स्वास्थ्य विभाग ने केंद्र सरकार की सलाह की लगातार अनदेखी की है। एडवाजरी को नजरअंदाज करने का नतीजा है कि स्वाइन फ्लू पांव पसारता जा रहा है। विभाग ने अब तक यह चिन्हिंत नहीं किया है कि किस एरिया में इसके मरीज अधिक मिल रहे हैं, ताकि ऐसे क्षेत्र में समुचित एहतियाती कदम उठाया जा सके।
स्वाइन फ्लू के पांव पसारने का एक बड़ा कारण सर्वे में लापरवाही भी है। मरीज मिलने पर खानापूर्ति की तर्ज पर सर्वे किया गया। सर्वे में लगाए गए कर्मचारियों को बचाव के संसाधन तक मुहैय्या नहीं कराया गया। इसका खुलासा कर्मचारियों ने ही किया है। यही कारण है कि वे जोखिम लेकर सर्वे करने से बचना चाहते हैं। उन्हें मास्क तक नहीं दिया गया है।
वैक्सीन खरीदी में देरी का यह बता रहे कारण
अधिकारियों का कहना स्वाइन फ्लू का वैक्सीन दवा विक्रेताओं के पास स्टाक में नहीं हैं। आर्डर पर वे मुबंई से मंगा कर देंगे। अधिकारियों को निर्देश दिया गय है कि लोकल परचेस के लिए जारी डिमांड लेटर में वे अर्जेंट अवश्य लिखे, ताकि वैक्सीन विभाग को जल्द उपलब्ध हो सके। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल को वैक्सीन खरीदने का निर्देश दिया गया है।
अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्रमें स्वाइन फ्लू के मरीज अधिक हैं। खास कर जीई रोड के किनारे श्रमिक बस्ती और पॉश कालोनी में। इसलिए सर्वे भी इन्ही स्थानों पर किया जा रहा है।
स्वाइन फ्लू से पीडि़त व संदिग्ध मरीज लगातार मिल रहे हैं पर कोई सराकारी अस्पताल में इलाज कराने नहीं जा रहा है। जबिक सरकारी अस्पतालों में दवा उपलब्ध होने के साथ अलग से इंतजाम करने का दावा किया जा रहा है। आखिर क्या वजह है कि सरकारी अस्पताल में जाने से मरीज बच रहे हैं।
स्वाइन फ्लू के मरीज निजी अस्पतालों में ही इलाज करवा रहे हैं। १९ लोग भर्ती हैं वे सब निजी अस्पताल में हैं। जबकि नीजि में इलाज मंहगा है फिर भी इलाज करवाना उनकी मजबूरी है। कुछ मरीजों के परिजनों से बातचीत में यह बात सामने आई कि सरकारी अस्पताल में मरीजों का ठीक से केयर नहीं किया जाता।
स्वास्थ्य विभाग के अफसर वैक्सीनेशन को लेकर शुरु से टालमोटल कर रहे हैं। इस रोग से पीडि़त मरीज के परिवार को वैक्सीन लगाया जाना चाहिए पर अब तक किसी को नहीं लगाया गया। कहते रहे वैक्सीन सरकार भेज नहीं रही है। फिर बोले हमनें डिमांड की है। इस तरह पांच माह बीत गए वैक्सीन का अता पता नहीं है।
नोडल अधिकारी डॉ. राजेन्द्र कुमार खंडेलवाल