राधेश्याम बताते हैं कि हर साल वे कम से कम 150 बड़ी और इतनी ही छोटी मूर्तियां बेच लेते थे, लेकिन इस बार 4 फीट की केवल 2 मूर्तियों का ऑर्डर है। कमोबेश यही हाल थनौदा के 40 से 45 मूर्तिकारों के वर्कशॉप का है। मजबूरी में अब छोटी मूर्तियां बना रहे हैं, लेकिन उनके भी खरीदार नहीं पहुंच रहे।
राधेश्याम बताते हैं कि मूर्तियों को तैयार करने के लिए लकड़ी, मिट्टी, पैरा, रस्सी से लेकर साज-सज्जा के सभी सामान पहले से ही खरीदना पड़ता है। इसके लिए उन्होंने बैंक से 5 लाख कर्ज लिया है। इसके अलावा जमा पूंजी अन्य खर्चों में लगा दिया। अब मूर्तियां बिक नहीं रहे और परिवार का सोना गिरवी रखकर बैंक का किस्त भर रहे हैं।
राधेश्याम बताते हैं कि मूर्तियों को अब पूरे साल वर्कशॉप में रखना होगा। इन मूर्तियों को चूहों से बचाना बड़ी चुनौती है। इसके अलावा लकडिय़ों में घून और क्रेक होने से भी बचाना होगा। तमाम कोशिशों के बाद भी दो-चार मूर्तियां को ही बचाई जा सकेंगी और मटेरियल भी दोबारा काम नहीं आएगा। कारीगरों को भी पूरे साल रखने की मजबूरी है।
बड़ी मूर्तियों के ऑर्डर कैंसल होने के बाद अब सभी मूर्तिकार छोटी मूर्तियां तैयार कर रहे हैं, लेकिन इनकी भी बिक्री कम है। छोटी मूर्ति बनाने वाले बाहरी कलाकार भी शहर में पहुंचते हैं, इसलिए इनसे भी इस बार राहत की उम्मीद कम है। राधेश्याम ने बताया कि कोरोना के कारण इस बार घरों में भी छोटी मूर्तियां रखने वाले कम पहुंच रहे हैं।
सरकार द्वारा गाइड लाइन में चार फीट की प्रतिमा की बंदिश के बाद भी उम्मीद थी, लेकिन कोरोना संक्रमण की स्थिति में समितियों की जिम्मेदारी तय करने के प्रावधान ने ज्यादा मुश्किल पैदा कर दी है। इसके अलावा इलाज का खर्च वसूलने और पंडाल में सीसीटीवी कैमरा, श्रद्धालुओं की उपस्थिति की निगरानी जैसे प्रावधान से संस्था समिति पीछे हट गए हैं।
राधेश्याम का कहना है कि मूर्तिकारों ने सीएम भूपेश बघेल, मंत्री ताम्रध्वज साहू और कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे को ज्ञापन सौंपकर राहत की मांग की है। सभी ने जल्द स्थिति की समीक्षा और निर्णय का भरोसा दिलाया है। यदि अब भी सख्त प्रावधानों में राहत मिलती है तो मूर्तिकारों ने राहत मिल सकती है।