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कोरोना संकट में गणेश पूजा के लिए सख्त गाइडलाइन, मूर्तियां नहीं बिकने से कर्ज में डूबे हजारों मूर्तिकार

गणेश उत्सव को लेकर सरकार की गाइड लाइन ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सख्त प्रावधानों के कारण संस्था-समितियों ने उत्सव से किनारा करते हुए मूर्तियों के ऑर्डर कैंसल करा लिया। (ganesh pooja 2020)

दुर्गAug 10, 2020 / 01:17 pm

Dakshi Sahu

कोरोना संकट में गणेश पूजा के लिए सख्त गाइडलाइन, मूर्तियां नहीं बिकने से कर्ज में डूबे हजारों मूर्तिकार

कोरोना संकट में गणेश पूजा के लिए सख्त गाइडलाइन, मूर्तियां नहीं बिकने से कर्ज में डूबे हजारों मूर्तिकार

दुर्ग. कोरोना संकट ने आर्थिक रूप से सबकी कमर तोड़ दी है, लेकिन थनौद के मूर्तिकारों को विघ्नहर्ता भगवान गणेश पर संकट से मुक्ति की आस थी। उम्मीद थी कि भगवान गणपति की मूर्तियां बिकने से कुछ हद तक तंगी कम हो जाएगी, लेकिन ऐन मौके पर गणेश उत्सव को लेकर सरकार की गाइड लाइन ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सख्त प्रावधानों के कारण संस्था-समितियों ने उत्सव से किनारा करते हुए मूर्तियों के ऑर्डर कैंसल करा लिया। हालात यह है कि जहां 100 से ज्यादा बड़ी मूतियां बिकती थीं, वहां बमुश्किल 2 से 3 ऑर्डर ही बचे हैं।
मूर्तिकार राधेश्याम चक्रधारी का थनौद बस्ती में करीब एक एकड़ एरिया में वर्कशॉप है। यहां वे परिवार व 5 से 6 कारीगरों के साथ पूरे साल मूर्तियां तैयार करते है। इस साल भी उन्होंने करीब 300 छोटी-बड़ी मूतियां तैयार कर ली है। राधेश्याम बताते हैं कि गणेश के साथ दुर्गोत्सव में भी दुर्ग-भिलाई, राजनांदगांव, रायपुर में 60 से 70 फीसदी मूर्तियां थनौद से जाती है। दूसरे शहरों के अलावा अन्य शहरों से भी बड़ी मूर्तियों के लिए संस्था समिति के लोग पहुंचते हैं। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल से भी ऑर्डर मिलता है। इन परिवारों ने इस बार भी उम्मीद में भगवान गणेश और दुर्गा जी की करीब 3000 प्रतिमाएं तैयार कर ली है।
150 की जगह इस बार केवल 2 ऑर्डर
राधेश्याम बताते हैं कि हर साल वे कम से कम 150 बड़ी और इतनी ही छोटी मूर्तियां बेच लेते थे, लेकिन इस बार 4 फीट की केवल 2 मूर्तियों का ऑर्डर है। कमोबेश यही हाल थनौदा के 40 से 45 मूर्तिकारों के वर्कशॉप का है। मजबूरी में अब छोटी मूर्तियां बना रहे हैं, लेकिन उनके भी खरीदार नहीं पहुंच रहे।
कर्ज लेकर सामान, सोना गिरवी रखकर किस्त
राधेश्याम बताते हैं कि मूर्तियों को तैयार करने के लिए लकड़ी, मिट्टी, पैरा, रस्सी से लेकर साज-सज्जा के सभी सामान पहले से ही खरीदना पड़ता है। इसके लिए उन्होंने बैंक से 5 लाख कर्ज लिया है। इसके अलावा जमा पूंजी अन्य खर्चों में लगा दिया। अब मूर्तियां बिक नहीं रहे और परिवार का सोना गिरवी रखकर बैंक का किस्त भर रहे हैं।
अब मूर्तियों को बचाना बड़ी चुनौती
राधेश्याम बताते हैं कि मूर्तियों को अब पूरे साल वर्कशॉप में रखना होगा। इन मूर्तियों को चूहों से बचाना बड़ी चुनौती है। इसके अलावा लकडिय़ों में घून और क्रेक होने से भी बचाना होगा। तमाम कोशिशों के बाद भी दो-चार मूर्तियां को ही बचाई जा सकेंगी और मटेरियल भी दोबारा काम नहीं आएगा। कारीगरों को भी पूरे साल रखने की मजबूरी है।
अब छोटी मूर्तियों पर टिकी उम्मीद
बड़ी मूर्तियों के ऑर्डर कैंसल होने के बाद अब सभी मूर्तिकार छोटी मूर्तियां तैयार कर रहे हैं, लेकिन इनकी भी बिक्री कम है। छोटी मूर्ति बनाने वाले बाहरी कलाकार भी शहर में पहुंचते हैं, इसलिए इनसे भी इस बार राहत की उम्मीद कम है। राधेश्याम ने बताया कि कोरोना के कारण इस बार घरों में भी छोटी मूर्तियां रखने वाले कम पहुंच रहे हैं।
गाइड लाइन के इन प्रावधानों ने बढ़ाई मुश्किलें
सरकार द्वारा गाइड लाइन में चार फीट की प्रतिमा की बंदिश के बाद भी उम्मीद थी, लेकिन कोरोना संक्रमण की स्थिति में समितियों की जिम्मेदारी तय करने के प्रावधान ने ज्यादा मुश्किल पैदा कर दी है। इसके अलावा इलाज का खर्च वसूलने और पंडाल में सीसीटीवी कैमरा, श्रद्धालुओं की उपस्थिति की निगरानी जैसे प्रावधान से संस्था समिति पीछे हट गए हैं।
अब भी मिले राहत तो सुधर जाएगी स्थिति
राधेश्याम का कहना है कि मूर्तिकारों ने सीएम भूपेश बघेल, मंत्री ताम्रध्वज साहू और कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे को ज्ञापन सौंपकर राहत की मांग की है। सभी ने जल्द स्थिति की समीक्षा और निर्णय का भरोसा दिलाया है। यदि अब भी सख्त प्रावधानों में राहत मिलती है तो मूर्तिकारों ने राहत मिल सकती है।
मूर्तिकार थनौद लव चक्रधारी ने बताया कि यदि राहत नहीं दी गई तो थनौद के मूर्तिकार बर्बाद हो जाएंगे। सरकार को मूर्तिकारों के लिए तत्काल राहत की व्यवस्था की जानी चाहिए। पूर्व में मूर्तिकारों के श्रम विभाग में पंजीयन व आर्थिक सहायता का भी भरोसा दिलाया गया था, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी है। राधेश्याम चक्रधारी मूर्तिकार थनौद ने बताया कि वर्कशॉप में मूर्तियां तैयार है, लेकिन समितियां नहीं आ रही है। मूर्तियां नहीं बिकी तो परिवार कर्ज में डूब जाएंगे। जीवकोपार्जन भी मुश्किल हो जाएगा। हालात यह है कि छोटी मूर्तियां भी नहीं बिक रही है। शासन को गाइड लाइन में राहत देना चाहिए।

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