कामाख्या मंदिर ( Kamakhya Temple ) में देवी के रजस्वला होने के चलते तीन दिनों तक बंद रखे जाते हैं मंदिर के कपाट
तंत्र साधना के लिए विश्व प्रसिद्ध है ये मंदिर, यहां पशु बलि देने का है नियम
कामाख्या मंदिर में कल से शुरू होगा अंबूबाची मेला, जानें इस शक्तिपीठ से जुड़े 10 हैरतंगेज रहस्य
नई दिल्ली। गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर ( Kamakhya Temple ) अपने चमत्कारों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां देवी मां के शरीर का अहम हिस्सा गिरा था। इसी के चलते इसे शक्तिपीठ माना जाता है। यहां लगने वाला अंबूबाची मेला बहुत मशहूर है। इस साल मेले की शुरुआत 22 जून से हो रही है, जो कि 26 जून तक चलेगी।
1.कामाख्या देवी का ये मंदिर तंत्र साधना का गढ़ माना जाता है। अंबूबाची मेले ( ambubachi mela ) में इसका विशेष महत्व होता है। तभी देश भर से साधु संत यहां सिद्धि प्राप्ति के लिए आते हैं।
3.बताया जाता है कि इन तीन दिनों में माता के मासिक धर्म के चलते मंदिर में बिछाए गए सफेद कपड़े लाल रंग के हो जाते हैं। जब तीन दिन बाद कपाट खोले जाते हैं तो यही गीले वस्त्र भक्तों को प्रसाद के तौर पर दिए जाते हैं। इस कपड़े को अंबूबाची वस्त्र कहते हैं।
4.एक अन्य मान्यता के तहत मां कामाख्या की योनी से निकलने वाले खून के चलते मंदिर के पास स्थित ब्रम्हपुत्र नदी का पानी भी लाल हो जाता है। 5.कामाख्या मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। यहां पर देवी के योनी के भाग की ही पूजा की जाती है। मंदिर में एक कुंड भी है जो हमेशा फूलों से ढंका रहता है। बताया जाता है कि इस कुंड से हमेशा अपने आप पानी निकलता रहता है और ये कभी नहीं सूखता है।
6.कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है मगर धार्मिक अनुष्ठानों के चलते इसमें हर व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता है। वहीं मंदिर के दूसरे हिस्से में माता के दर्शन किए जा सकते हैं। जबकि तीसरा गर्भ गृह है।
7.कामाख्या मंदिर में पशु बलि देने का नियम है। बताया जाता है कि मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदिर में पशु की बलि देने से देवी प्रसन्न होती हैं। इससे वो भक्त की इच्छा जरूर पूरी करती हैं। यहां कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है।
8.मां कामाख्या मंदिर का निर्माण देवी के शरीर का अंग गिरने से हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के प्रति भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल किया था। उन्होंने इससे अग्नि में स्वाहा हुईं देवी सती के मृत शरीर के 51 भाग किए थे। जिनमें से एक भाग कामाख्या में गिरा था।
9.बताया जाता है कि कामाख्या देवी का मूल मंदिर अब पर्वत के अंदर समां चुका है। उनका मुख्य मंदिर पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग पर स्थित है। जिसे नरकासुर मार्ग के नाम से जाना जाता है। जबकि जिस जगह अभी देवी की आराधना होती है उसे कामदेव मंदिर कहा जाता है।
10.पौराणिक कथा के अनुसार नरकासुर नामक एक राक्षस कामाख्या देवी से विवाह करना चाहता था। तब देवी ने उसे एक रात में उस जगह मंदिर और मार्ग बनवाने को कहा था। असुर के तेजी से बढ़ते हुए काम को देख देवी ने मुर्गे से रात में बांग दिलवाकर उसके कार्य को रोक दिया था।