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धरती की जन्नत कश्मीर : इन 10 बातों से समझें आजादी के बाद से अब तक के हालात

Published: Aug 08, 2019 10:30:25 am

Submitted by:

Navyavesh Navrahi

कश्मीर (Kashmir) के लिए पाकिस्तान ने भारत पर तीन बार किया हमला
आजादी के बाद पाकि ने कबाइलियों के रूप में घुसाई सेना
जिया-उल-हक ( Muhammad Zia-ul-Haq) ने चलाया था ‘ऑपरेशन टोपाक’

kashmir
देश की आजादी के बाद से जम्मू-कश्मीर ( Jammu-Kashmir ) का विवादों से गहरा नाता रहा है। यह विवाद डोगरा शासन के अंतिम नरेश महाराजा हरि सिंह के विलयसंधि पर हस्ताक्षर करने के बाद से शुरू हो गया था। उनके संधि पर हस्ताक्षर करने को लेकर भी इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। कुछ तो यहां तक कहते हैं कि महाराजा हरि सिंह ( Maharaja Hari Singh ) ने विलयसंधि पर हस्ताक्षर ही नहीं किए थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कश्मीर ? को लेकर पाकिस्तान ने भारत पर तीन बार हमला किया। जिसमें उसे मुंह की खानी पड़ी। आइए, आजादी के बाद से कश्मीर में अब तक के हालात पर एक नजर डालते हैं…
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1. सन 1947 में देश अजाद हुआ। इसी के साथ ये दो हिस्सों- हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बंट गया। उस समय रियासतों के विलय का काम चल रहा था। विलय होने वाली रियासतों में जम्मू-कश्मीर रियासत भी थी, जिसके राजा महाराजा हरि सिंह थे। महाराजा हरि सिंह ने हालात के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में करने पर सहमति जताई।
2. कुछ रियासतें स्वतंत्र राज्य चाहती थीं, इसलिए उन्होंने विलय में देरी लगाई। ऐसे में कश्मीर की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, जबकि ये अन्य रियासतों के मुकाबले जटिल मामला था। पाकिस्तान के साथ लगा होना भी समस्या का बड़ा कारण था।
3. देश की आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान में कबाइलियों को एकजुट किया जाने लगा। जिन्ना ने कश्मीर पर कब्जा करने की योजनाएं बनाने लगे। देश का बंटवारा हो चुका था और क्षेत्रों का निर्धारण भी हो चुका था। लेकिन जिन्ना ने 22 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के रूप में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में भेज दिया।
4. सेना ने वर्तमान के पा‍क अधिकृत कश्मीर में खून की नदियां बहा दीं। इस खूनी खेल को देखकर तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह जम्मू चले गए। यहां उन्होंने भारत से सैनिक सहायता मांगी, लेकिन सहायता पहुंचने में काफी देर लग गई।
5. भारतीय सीमा में घुसे पाक सैनिकों को भारतीय सेना ने खदेड़ दिया। इसी बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 31 दिसंबर 1947 को यूएनओ ( uno ) से अपील की कि वह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी लुटेरों को भारत पर आक्रमण करने से रोके। 1 जनवरी 1949 को भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध-विराम की घोषणा की गई।
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6. सन 1965 में पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिश की। इस बार भी उसे मुंह की खानी पड़ी। इस युद्ध में पाकिस्तान हार गई। इससे पाकिस्तान तिलमिला उठा और पूरे देश में नफरत फैलाने का कार्य किया। इसके बाद से पाकिस्तान की समूची राजनीति कश्मीर पर आधारित हो गई।

7. इसके बाद भी पाकिस्तान ने कश्मीर को कब्जाने से बाज नहीं आया। परिणामस्वरूप 1971 में उसने फिर से कश्मीर पर अधिकार करने की कोशिश की। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका डटकर मुकाबला किया। पाकिस्तानी सेना के 1 लाख सैनिकों को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा। इसी के बाद ‘बांग्लादेश’ नाम से स्वतंत्र देश का जन्म हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहतीं तो कश्मीर की समस्या सदा के लिए सुलझा सकती थीं। विशेषज्ञों के अनुसार- लेकिन वे जुल्फिकार अली भुट्टो के बहकावे में आ गईं और 1 लाख सैनिकों को छोड़ दिया।

8. इस शर्मनाक हार के बाद पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में सैनिकों को हार का बदला लेने की शपथ दिलाई गई। अले युद्ध की तैयारी की जाने लगी। किंतु अफगानिस्तान में हालात बिगड़ने लगे और 1971 से 1988 तक पाकिस्तानी सेना और कट्टरपंथी अफगानिस्तान में उलझी रही।

9. 1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक ने 1988 में भारत के विरुद्ध ‘ऑपरेशन टोपाक’ नाम से ‘वॉर विद लो इंटेंसिटी’की योजना बनाई। इस योजना के तहत भारतीय कश्मीर के लोगों के मन में अलगाववाद और भारत के प्रति नफरत के बीज बोने थे और फिर उन्हीं के हाथों में हथियार थमाने थे। पाकिस्तान का इरादा सिर्फ कश्मीर को ही अशांत रखना नहीं रहा, वे जम्मू और लद्दाख में भी सक्रिय होने लगे। कश्मीरी पंडित वहां से विस्थापित होने लगे।

10. इसके बाद कश्मीर लगातार आतंकवाद और अलगाववाद के चलते सुर्खियों में बना रहा। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान भी कश्मीर की समस्या पर लगा रहा। कश्मीर का मुद्दा यूएनओ तक में उछलता रहा। पाकिस्तान में इमरान खान की लोकतांत्रिक सरकार आने के बाद भारत-पाकि दोस्ती की बातें की जाती रहीं, लेकिन वे अंजाम तक नहीं पहुंच पाईं। आज 5 अगस्त को केंद्र की भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर पर ऐतिहासिक फैसला लेते हुए इसे दो हिस्सों मे बांटकर दोनों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया।

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