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लबों पर हंसी और दिलों में दूरियां लिए मोदी और आडवाणी की हुई मुलाकात, रिश्तों में इन 10 वजहों से आई थी खटास

Published: May 24, 2019 03:36:38 pm

Submitted by:

Soma Roy

कभी आडवाणी का माइक सेट करने का काम करते थे नरेंद्र मोदी, आज ऐसे बन गए सबके चहीता
पीएम पद के दावेदार के तौर पर मोदी का नाम सामने आने पर आडवाणी में थी नाराजगी

modi and adwani

लबों पर हंसी और दिलों में दूरियां लिए मोदी और आडवाणी की हुई मुलाकात, रिश्तों में तल्खी की ये रहीं 10 वजह

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 में धमाकेदार जीत हासिल करने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी आज बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से मिलने पहुंचे। उन्होंने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिए। दोनों नेताओं ने ही मुस्कुराकर एक-दूसरे का अभिवादन किया। मगर इस हंसी के पीछे पुराने रिश्ते की कड़वहाट अभी तक बराकरार दिखी। तभी इस मुलाकात में दिलों के मिलने से ज्यादा औपचारिकता नजर आई। तो आखिर किन वजहों से दोनों के दिलों में दूरियां आई थीं, आइए जानते हैं।
1.पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के बीच मतभेद की चर्चा सबसे ज्यादा साल 2004 और 2009 में सामने आई थी। उस वक्त मुद्दा पीएम पद के लिए योग्य उम्मीदवार चुनना था। इसके पहले भी दोनों के रिश्ते ज्यादा बेहतर नहीं रहे हैं। इन बातों का जिक्र नीलांजन मुखोपाध्याय की ओर से लिखी गई किताब, “नरेंद्र मोदी द मैन, द टाइम्स” में भी किया गया है।
2. किताब के अनुसार बीजेपी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खराब सेहत के चलते पार्टी की जिम्मेदारी दूसरों को सौंपने का फैसला लिया था। ऐसे में उनके बाद लालकृष्ण आडवाणी को ही पीएम पद के प्रमुख दावेदार के तौर पर देखा जा रहा था। मगर पार्टी के दूसरे कार्यकर्ताओं की ओर से पार्टी की कमान युवा पीढ़ी को सौंपने की मांग उठाई गई, इस बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी नाम उभरकर सामने आया।
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3.जनता ने भी मोदी को पीएम पद का दावेदार बनाए जाने के लिए योग्य पाया। जिसके चलते मजबूरी में आडवाणी को बैकफुट पर आना पड़ा। पार्टी में अपनी मजबूत साख रखने के बावजूद मोदी के कारण उन्हें पीएम की दावेदारी छोड़नी पड़ी, इसके चलते आडवाणी नाराज थे।
4.पीएम पद की लड़ाई से पहले भी मोदी और आडवाणी के बीच रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं रहे हैं। चूंकि 1970 के दशक में मोदी बीजेपी में एक ऑफिस ब्वॉय के तौर पर काम करते थे। कई बार वे पार्टी की रैली में लालकृष्ण आडवाणी का माइक सही करते थे। मगर उसी बीच सन 1990 में उन्हें पार्टी ने प्रमोट करते हुए लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की रथ यात्रा की जिम्मेदारी सौंपी थी। मोदी के प्रमोशन की ये बात आडवाणी को नागवार गुजरी थी।
5.मोदी और आडवाणी के रिश्ते में तनातनी की बात सन 1995 में भी सामने आई थी। तब एक दिन दोपहर को आडवाणी, केशुभाई और मोदी कार से कहीं जा रहे थे। उस दौरान मोदी कार की फ्रंट सीट में ड्राइवर के बगल में बैठे थे। तभी रास्ते में बीजेपी के एक और नेता गोविंदचार्य दिख गए। तभी उन्हें मोदी की जगह बैठाया गया। हैरानी की बात यह रही कि मोदी को गाड़ी से उतारने के बाद उन्हें पीछे नहीं बैठाया गया। इस बीच आडवाणी ने भी मुंह फेर लिया। नतीजतन मोदी को वहां से पैदल आना पड़ा था। इस बात से मोदी खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे।
6.इसके अलावा जब भी पार्टी के लोग मोदी के काम की तारीफ करते थे। तब लालकृष्ण आडवाणी को ये बात पसंद नहीं आती थी। वो इसे मजाक के तौर पर लेते थे और सबसे कहते थे कि मोदी अभी बहुत यंग हैं, पार्टी में कई वरिष्ठ नेता हैं, जो सम्मान के हकदार हैं।
7.पीएम मोदी की तारीफ में एक बार लालकृष्ण आडवाणी ने विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी पर व्यंग कंसा था कि मोदी एक कुशल शासक साबित होंगे। मगर वो एक इवेंट मैनेजर की तरह होंगे। जिनकी कोई तुलना नहीं की जा सकती है।
8.इसके अलावा नरेंद्र मोदी की बीजेपी में शुरुआत छोटे स्तर से हुई थी। मगर वो तेजी से पार्टी में आगे बढ़ गए। जबकि उस वक्त आडवाणी पार्टी में उच्च पद पर थे। मगर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की ओर से मोदी को आगे बढ़ाए जाने का समर्थन करने पर आडवाणी नाराज हो गए थे।
9.आडवाणी और मोदी में वैचारिक मतभेदों के चलते भी अनबन रहती थी। मोदी युवा सोच के थे। जबकि आडवाणी अभी भी पुराने और परंपरागत सिद्धांतों को बढ़ावा देना चाहते थे।

10.जब मोदी पहली बार पीएम बनें तो ज्यादातर आलाधिकारी उनके समर्थन थे। इस बात से भी आडवाणी नाराज थे। जिसके चलते उन्होंने धीरे-धीरे पार्टी से किनारा कर लिया। बाद में उन्हें पार्टी के मार्गदर्शक मंडल की जिम्मेदारी सौंपी गई।

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