नोटबंदी के बाद तो आपने अक्सर नदियों और तालाबों में हजारों नोट तैरते देखे होंगे, लेकिन देश में एक ऐसी झील है जिस पर सालों साल नोट तैरते रहते हैं। यहां पानी के अंदर अरबों का खजाना भी दफ़्न है। मगर हैरत की बात यह है कि यहां से कोई भी एक रुपए तक को हाथ नहीं लगाता है। तो क्या है इस झील में मौजूद अकूत दौलत का रहस्य आइए जानते हैं।
हिमाचल की हरी—भरी वादियों में स्थित इस झील का नाम कमरूनाग है। ये मंडी से लगभग 60 किलोमीटर दूर रोहांडा के पास स्थित है। इस झील में नोटों के तैरने का सिलसिला आज से नहीं बल्कि सदियों पहले से चला आ रहा है।
इस झील के पास एक मंदिर भी है। इसे कमरूनाथ बाबा का मंदिर कहते हैं। मान्यता है कि पानी में मौजूद खजाने की रक्षा आज भी बाबा और उनके प्रहरी कर रहे हैं।
कमरुनाग बाबा का जिक्र महाभारत काल के ग्रंथों में देखने का मिलता है। उन्हें बबरुभान के नाम से भी जाना जाता था। उन्हें धरती का सबसे शक्तिशाली योद्धा माना जाता था। हालांकि वे कृष्ण नीति के आगे हार गए थे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस झील का निर्माण भीम ने किया था। मगर इसके पीछे की नीत भगवान श्रीकृष्ण की थी। दरअसल कमरुनाग बाबा के बल से कृष्ण जी भी भयभीत थे। उन्हें डर था कि इनके कौरवों का साथ देने से पांडव हार न जाए इसलिए उन्होंने बबरुनाथ बाबा को एक शर्त रखकर उन्हें हरा दिया था और इसके बदले उनसे उनका सिर मांग लिया था।
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने उनके कटे हुए सिर को हिमालय के शिखर पर रख दिया, लेकिन बताया जाता है कि जिस ओर बबरुनाथ का शीष जाएगा विजय उनकी ओर के लोगों की होगी। इसलिए भगवान ने उनके शीष के साथ एक पत्थर बांधकर पांडवों की ओर घुमा दिया। इन्हें पानी की दिक्कत न हो इसलिए भीम ने यहाँ अपनी हथेली को गाड कर एक झील बना दी।k
इस झील को लेकर कईं मान्यताएं है। कहा जाता है कि ये झील देवताओं का है। इसमें उनका खजाना दबा हुआ है। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार ये झील सीधे पाताल लोग तक जाती है।
इस झील में अपार धन—दौलत होने के बावजूद कोई इसे चुरा नहीं सकता है। कहते हैं कि इसकी रक्षा कमरुनाग के प्रहरी करते है। इस झील के पास एक नाग—सा दिखने वाला वृक्ष है। बताया जाता है कि जो कोई व्यक्ति इस खजाने को चुराने की कोशिश करता है या बुरी नजर डालता है तब ये पेड अपने असली रूप यानि नाग देवता के रूप में आ जाता है।
मान्यता है कि जो कोई इस झील में सोना चांदी या रुपए चढ़ाता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। लोग यहां खुद के पहने हुए गहने भी इसमें डाल देते हैं।
जून के महीने में यहां एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें श्रद्धालू दूर—दूर से हिस्सा लेने आते हैं। वे सोना—चांदी, हीरे, जवाहरात आदि चढ़ाते हैं। इस झील के पास लोहड़ी पर भी भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है।