दस का दम

वट सावित्री व्रत में क्यों जरूरी होता है चना, जानें पूजा से जुड़ी ऐसी ही 10 बातें

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Published: May 14, 2018 12:00:04 pm
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वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को होता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। इस बार वट सावित्री पूजा 15 मई यानि मंगलवार को पड़ रहा है। तो कैसे करें पूजा और क्या है व्रत का महत्व आइए जानते हैं।

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यह पूजा सावित्री के अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाने की खुशी में मनाया जाता है। मान्यता है इस दिन जो भी विवाहित स्त्री सच्चे मन से यह व्रत रखती है उसका वैवाहिक जीवन बहुत खुशहाल रहता है।

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इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। महिलाएं इसकी परिक्रमा कर धागा बांधती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी पेड़ के नीचे सावित्री के पति सत्यवान को जीवनदान मिला था।

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इस व्रत से जुड़ी कथा के अनुसार सावित्री के पति सत्यवान की आयु बहुत कम थी। भाग्य के निर्धारित समयानुसार एक दिन सत्यवान की मृत्यु हो गई। तब सावित्री अपने पति के शव के साथ वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थी।

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सावित्री ने अपने पति के प्राण वापस लाने के लिए यमराज से उसे भी साथ ले जाने को कहा था। इस बात से प्रसन्न होकर यमराज ने उससे तीन वरदान मांगने को कहे थे। तब सावित्री ने पहले वरदन में अपने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा।

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यमदेव ने सावित्री की ये तीनों मनोकामनाएं पूर्ण होने का आशीर्वाद दे दिया। यमदेव ने सत्यवान के प्राण चने के रूप में सौंपे थे। तभी सावित्री ने इस चने को अपने पति के मुंह में रख दिया। ऐसा करते ही सत्यवान जीवित हो गए। इसी कारण वट सावित्री व्रत में चने का विशेष महत्व है। इसके बिना पूजा अधूरी रहती है।

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चूंकि सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा था, इसलिए ये व्रत पति की लंबी आयु के साथ पुत्र की कामना के लिए भी रखा जाता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रंगार करके बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं। इसलिए इसे बरगदाई भी कहा जाता है।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार बरगद-वृक्ष में भी मां लक्ष्मी और महेश की उपस्थिति मानी जाती है। इस वट वृक्ष के नीचे पूजा करने से मन वांछित फल की प्राप्ति होती है।

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इस व्रत को करने के लिए सुबह स्नान के बाद स्वस्छ वस्त्र पहनें। अब पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं एवं दूध चढाएं। अब पेड़ की जड़ में गुड़, भीगे हुए चने, आटे से बनी हुई पूड़ी, कुमकुम, रोली, 5 प्रकार के फल, पान का पत्ता चढाएं। अब मां सावित्री की आराधना करते हुए वृक्ष के चारो ओर परिक्रमा करते हुए कच्चा धागा लपेटे।

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आप धागे को 7 व 11 बार लपेट सकते हैं। इसके बाद मां सवित्री और सत्यवान की तस्वीर व मूर्ति को धूप—दीप दिखाएं एवं मिष्ठान अर्पण करें। अब वृक्ष के नीचे बैठकर व्रत की कथा पढें। कथा की समाप्ति के बाद मां सावित्री से अपने पति की लंबी आयु की कामना करें।

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