1.हिंदू धर्म के अनुसार एक व्यक्ति को अपने जीवन में तीन तरह के कर्ज चुकाने होते हैं। पहला ऋण उसका भगवान के प्रति है। जिसे देव ऋण कहते हैं। दूसरा कर्ज उसका गुरू के लिए होता है। इसे ऋिषि ऋण कहते हैं। जबकि अंतिम कर्ज उसका अपने माता-पिता व रिश्तेदारों के लिए होता है। इसे पूर्वज ऋण कहते हैं।
2.पितृ पक्ष पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए व्यक्ति को इन्हीं ऋणों को चुकाना पड़ता है। ऐसा करने से पितरों के आशीर्वाद के साथ जीवन में तरक्की का मार्ग भी मिलता है। इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
3.यूं तो श्राद्ध कार्य अपने—अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार किया जाता है, लेकिन अगर आपको ये नहीं पता है तो आप पितृ पक्ष के आखिरी दिन यानि महालया अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकते हैं।
4.चूंकि महालय अमावस्या को कोई भी अपने पितरों का श्राद्ध कर सकता है इसलिए इस दिन को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार पूर्वजों की आत्मा ग्यारह महीनों तक दूसरे लोगों में विचरण करने के बाद पितृ पक्ष के मौके पर ही धरती पर आते हैं।
5.माना जाता है कि जो व्यक्ति पितृ पक्ष में अमावस्या के दिन अपने पितरों का तर्पण करता है उस पर ईश्वर की कृपा होती है। साथ ही उसे यम देव की कृपा प्राप्त होती है। ऐसे लोग हमेशा बुरी बाधाओं से सुरक्षित रहते हैं।
6.जो लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान नहीं करते हैं उन्हें पितृ दोष लगता है। क्योंकि पूर्वजों की इच्छाएं अधूरी रह जाती है, इससे उन्हें मोक्ष नहीं मिलता है। 7.पितृ पक्ष के दिन उनका तर्पण करने से मृतकों की आत्मा को शांति मिलती है। जिससे वो सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर वापस पितृ लोक चले जाते हैं।
8.हिंदू धर्म के अलावा बंगाली समुदाय में भी सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन देवी दुर्गा ने धरती पर कदम रखा था। तभी इस दिन चंडी पाठ का आयोजन किया जाता है।
9.बंगाली समुदाय के अनुसार भाद्रपद से अमावस्या तक देव लोक में एक बार युद्ध हुआ। ये जंग देवाताओं व असुरों में हुई। युद्ध के दौरान कई लोग मारे गए। इन्हीं दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए एक श्रद्धांजली सभा का आयोजन हुआ। जिसे महालया नाम दिया गया।
10.एक अन्य कथा के अनुसार पितृ पक्ष पर तर्पण का विशेष महत्व है क्योंकि योद्धा कर्ण ने भी अपने पूर्वजों की आत्म शांति के लिए दान दिया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार कर्ण मृत्यु के बाद यमलोक पहुंचा तो उसे आभूषण दिए गए, लेकिन खाना नहीं। क्योंकि जब वो जीवित थे तो कभी भोजन का दान नहीं दिया था। तभी यमराज ने उन्हें दोबारा पृथ्वी पर भेजा था तब उन्होंने पितृ पक्ष पर जरूरतमंदों को पूरे पंद्रह दिन तक भोजन कराया था।