1.शिव पुराण के अनुसार पहले ये मंदिर भगवान विष्णु का हुआ करता था। उस समय ऋषि मान्धाता वहां एक कुटिया बनाकर रहते थे। 2.चूंकि ऋषि मुनि शिव के परम भक्त थे इसलिए वे जब भी भोजन करते थे दो वे एक पत्तल में शिव और पार्वती जी के लिए भी अन्न निकाल देते थे।
3.बताया जाता है कि ऋषि मान्धाता अपनी साधना के बल पर भगवान शिव को भोजन कराने हिमालय पहुंच जाते थे। चूंकि मान्धाता हमेशा खिचड़ी बनाते थे इसलिए वो भोलेनाथ को भी वही खिलाते थे।
4.पुराणों के अनुसार ऋषि मुनि भगवान को भोग लगाने के बाद बचे हुए खिचड़ी के दो हिस्से करते थे। जिसमें वो एक हिस्सा खुद खाते थे और दूसरा लोगों में बांट देते थे। 5.मगर बाद में मान्धता बीमार रहने लगे तो वे भोग लगाने हिमालय नहीं जा पाते थे। बताया जाता है कि तब भगवान शिव खुद ऋषि की कुटिया में आकर खिचड़ी खाते थे और उन्हीं की तरह इसके दो हिस्से करते थे।
6.शिव पुराण के अनुसार ऋषिवर को बीमार देख भगवान शिव ने उन्हें खुद अपने हाथों से खिचड़ी खिलाई थी। साथ ही मेहमानों को भी भोजन परोसा था। 7.कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ ने मान्धाता की निष्ठा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनका एक हिस्सा हमेशा के लिए काशी में रहेगा।
8.भगवान शिव के आशीर्वाद के बाद से काशी में स्थित विष्णु जी के इस मंदिर में भगवान शंकर की स्थापना की गई। 9.बताया जाता है कि इस मंदिर में आज भी खिचड़ी का भोग रखा जाता है जो खाली मिलता है। लोगों का मानाना है कि शिव पार्वती यहां भोजन करने आते हैं।
10.इस मंदिर का जीर्णोद्धार रानी अहिल्याबाई ने कराया। क्योंकि ऋषि मुनि के मृत्यु के बाद मंदिर की हालात खराब थी। तब एक बार रानी उस मंदिर में दर्शन के लिए आई थीं। तभी उन्होंने इसके पु:निर्माण के बारे में सोचा था।