बीमार पड़ने की वजह से 15 दिनों के लिए एकांतवास पर चले जाते हैं भगवान
भगवान की देखरेख के लिए राजवैद्य को लगाया जाता है
आज पुरी में 108 कलशों से होगा भगवान जगन्नाथ का स्नान, जानें इससे जुड़ी 10 रोचक बातें
नई दिल्ली। ओडिशा में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में आज से स्नान यात्रा आरंभ हो जाएगी। इस दौरान जगन्नाथ जी को भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ गर्भ गृह से निकाला जाएगा। साथ ही उनका जल से अभिषेक किया जाएगा। इस आयोजन के बाद से भगवान पंद्रह दिन के एकांतवास पर चले जाएंगे।
1. पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। रथ यात्रा की शुरूआत स्नान मेले से होती है। जो कि करीब एक महीने पहले होती है। आज जगन्नाथ में स्नान यात्रा की शुरूआत दोपहर एक बजे से होगी।
3.मंदिर के पुजारियों की ओर से अभिषेक के बाद आम लोग भी जल चढ़ा सकेंगे। ये प्रक्रिया दोपहर 2:30 बजे तक चलेगी। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ समेत बलराम और सुभद्रा को गंगाजल से स्नान कराने से व्यक्ति के जीवन में मौजूद कष्ट दूर होते हैं।
4.अभिषेक के बाद भगवान का दिव्य शृंगार किया जाएगा। बताया जाता है पूजन के सबसे अंत में नेत्रदान का अनुष्ठान किया जाता है। इससे मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। 5.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ के स्नान कार्यक्रम के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं। इसलिए वे 15 दिनों के एकांतवास पर मंदिर में एक अलग कमरे में रहते हैं। स्वास्थ लाभ के करीब एक महीने बाद वे रथ यात्रा के दौरान वे दोबारा मंदिर से निकलकर भक्तों को दर्शन देने आते हैं।
6.मंदिर के पुजारी के अनुसार भगवान बीमार होने के बाद मंदिर में अपनी पुरानी जगह पर नहीं रहते हैं। बल्कि एक अलग कमरे में रहते हैं, जहां बीमार व्यक्ति का इलाज किया जाता है। भगवान के इस खास दरबार को अंसारा के नाम से जाना जाता है।
7.भगवान के बीमार होने से एकांतवास में रहने की इस अवधि को अनाबसारा एवं अनासारा के नाम से जाना जाता है। इस दौरान भगवान को ठीक होने के लिए दशमूला नामक दवाई दी जाती है।
8.वहीं भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को खाने में फल, पनीर और पानी दिया जाता है। बताया जाता है कि ईशवर के इलाज के राजवैद्य को रखा जाता है। वे 24 घंटे उनकी देखरेख करते हैं।
9.चूंकि बीमार पड़ने और स्नान के चलते मूर्तियों का रंग धुंधला हो जाता है। इसलिए भगवान के स्वास्थ लाभ के बाद प्रतिमाओं को नए रंगों से पेंट किया जाता है। 10.एकांतवास के अगले दिन यानि 16वें दिन भगवान नए अवतार में भक्तों के सामने आते हैं। तभी से रथ यात्रा का आयोजन शुरू हो जाता है।