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दस का दम

यहां आज भी शेषनाग के रूप में मौजूद हैं भगवान शिव, ये 10 बातें हैं इसका सबूत

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6 years ago
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भगवान शिव के भक्त दुनियाभर में मौजूद है। उनकी भोले भंडारी पर अपार श्रद्धा है। उनकी इसी आस्था का सबूत है कि भगवान शिव आज भी धरती पर मौजूद हैं और वो शेषनाग के तौर पर मणिमहेश पर्वत के शिखर से भक्तों को दर्शन दे रहें हैं। इस बात की पुष्टि कई धार्मिक ग्रंथ एवं विद्वान भी करते हैं।

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भगवान शिव के चमत्कारों की झलक चंबा जिले में स्थित मणिमहेश पर्वत पर देखने को मिलती है। इसे चंबा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि यहां भगवान शिव भक्तों को साक्षात दर्शन देते हैं।

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मणिमहेश नामक पर्वत शिखर का शाब्दिक अर्थ है महेश के मुकुट में जड़ा नगीना। विद्वानों के अनुसार इस पर्वत पर शिव शेषनाग मणि के रूप में विराजमान है। वो अपने भक्तों को यहां से ही आशीर्वाद दे रहे हैं। इस पर्वत के दर्शन करने मात्र से लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं।

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बताया जाता है कि मणिमहेश पर्वत पर विराजमान भोलेनाथ शाम व रात्रि के मध्यकाल में भक्तों को दर्शन देते हैं। उनकी ये महिमा सूर्यास्त के समय देखी जा सकती है। उस वक्त सूर्य की किरणों के पर्वत पर पड़ने से महादेव की छवि बनती है। यदि मौसम साफ रहे तो भक्त साक्षात इस रूप को देख सकते हैं।

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मणिमहेश पर्वत की चोटी हमेशा बर्फ और बादलों से ढकी रहती है। इस अदृश्य पर्वत श्रृंखला के शिखर पर भोलेनाथ को देखना बहुत दुर्लभ एवं अलौकिक होता है। मान्यता है कि नीलकंठ अपने जिस भक्त से प्रसन्न होते हैं, उसे आधी रात में दर्शन जरूर देते हैं।

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बताया जाता है कि पर्वत की चोटी से एक मणि की तरह प्रकाश निकलता हुआ दिखाई देता है। भगवान के इस चमत्कारी कार्य के दर्शन करने मात्र से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यहां दुनियाभर से कई लोग दर्शन के लिए आते हैं।

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कैलाश की तरह भगवान शिव का ये धाम भी बहुत चमत्कारों से भरा हुआ है। कैलाश पर्वत की तरह ही मणिमहेश पर चढ़ना भी मुमकिन नहीं है। इस पर्वत के शिखर तक जिसने भी पहुंचने की कोशिश की है उसे असफलता ही मिली है। माना जाता है कि भगवान शिव एक अदृश्य शक्ति बनकर लोगों को चढ़ने से रोकते हैं।

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मणिमहेश पर्वत की कुल ऊंचाई कितनी है इस बात का ठोस प्रमाण नहीं है। अब तक कोई भी इसकी सटीक जानकारी नहीं दे सका है। कुछ शोध के अनुसार इसकी ऊंचाई 18 हजार 564 फुट है। इसकी ऊंचाई ज्यादा न होते हुए भी इसके शिखर तक पहुंचना असंभव है। क्योंकि सन् 1968 में इंडो-जापनीस की एक टीम ने जिसका नेतृत्व नंदिनी पटेल कर रहीं थी इस पर चढ़ाई की कोशिश की थी, लेकिन वे असफल रहें।

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मणिमहेश पर्वत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार कई वर्ष पहले एक गड़रिया अपने कुछ भेड़ों के साथ पर्वत पर चढ़ रहा था। तभी वो अचानक पत्थर के बन गए। आज भी पर्वत पर ऐसे ही पत्थर देखने को मिलते हैं। एक अन्य कथा भी प्रचलित है। जिसके तहत एक सांप ने भी पर्वत के शिखर पर पहुंचने की कोशिश की थी, वो भी पत्थर का बन गया था।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती के साथ निवास करने के लिए मणिमहेश पर्वत की रचना की थी। इस स्थान पर शिव शेषनाग की तरह जबकि देवी पार्वती गिरजा के रूप में मौजूद हैं। इस पर्वत की खासियत है कि ये सूरज की किरणों के अनुसार अपना रंग बदलता है।

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