scriptDurga Puja 2019: दुर्गा पूजा की ये 10 परंपराएं नवरात्रि को बनाती है खास | These 10 traditions of Durga Puja make Navratri special | Patrika News

Durga Puja 2019: दुर्गा पूजा की ये 10 परंपराएं नवरात्रि को बनाती है खास

locationनई दिल्लीPublished: Sep 20, 2019 01:40:02 pm

Submitted by:

Pratibha Tripathi

नवरात्रि में ये खास चीजें करने से होगें पूरे काम
मां दुर्गा के 9 रूप के साथ उनके नौ भोग
मां की आरती के पहले करेंं गरबा/डांडिया
नवरात्रि में बना बड़ा पंडाल

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नई दिल्ली। नवरात्रि का समय ज्यों-ज्यों नज़दीक आ रहा है हर तरफ तैयारियां जोर शोऱ से शुरू की जाने लगी है। हमारे देश में नवरात्रि का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के लिये दूर देश के लोग भी आकर्षित होकर यहां आते है और मां दुर्गा की भक्ति में डूब जाते है। दुर्गा पूजा का एक एक दिन हमारे लिये महत्वपूर्ण रहता है इसलिये हर दिन इनमें तरह तरह की परंपराये होती है 9 दिन तक मां की अराधाना की जाती है और, फिर 10वें दिन मानाया जाने वाला दशहरा इस पूरे त्योहार को खास बनाता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों को मां शक्ति के आगमन का बेसब्री से इंतज़ार होता है। नवरात्रि को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।

10 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार को मां की अराधना के साथ साथ ये 10 चीज़ें खास बनाती हैं। चलिये इसके बारे में बताते है।

मां दुर्गा का पंडाल
दुर्गा पूजा की तैयारियों में सबसे खास माना जाता है मां दुर्गा का पंडाल। क्योकि इस जगह पर मां शक्ति की प्रतिमा को विधि-विधान से स्थापित किया जाता है और पूरे 9 दिन तक पूजा-अर्चना होती है। मां का पट सप्तमी यानी सातवें दिन खुलता है जिसके बाद लोग इन पंडालों में मां के दर्शन करने आते हैं। इस पंडाल को इस तरह से सजाया जाता है कि लोग कापी समय तक इसकी चर्चा करते है। इसके लिये पूजा समितियां बाहर के कारीगरों को बुलाकर किसी भी थीम के साथ पंडाल तैयार कराती हैं।

भोग
मां दुर्गा 9 रूप होते है इसलिए इन नौ दिनों तक उनके पहनावे से लेकर भोग तक अलग अलग चढ़ाया जाता है। घरों में भी लोग मां को घी, गुड़, नारियल, मालपुआ का भोग चढ़ाते हैं। इसके अलावा जो लोग व्रत करते हैं वे भी फलाहार के रूप में मखाना का खीर, घुघनी, संघाड़े के आटे का हलवा, शर्बत वगैरह फलाहार के रूप में लेते हैं और इसे प्रसाद के रूप में बांटते है।
धुनुची डांस
दुर्गा पूजा के दौरान किये जाने वाला धुनुची नृत्य सबसे खास है। धुनुची एक प्रकार का मिट्टी से बना बर्तन होता है जिसमें नारियल के छिलके जलाकर मां की आरती की जाती है। लोग दोनों हाथों में धुनुची लेकर, शरीर को बैलेंस करते हुए, नृत्य करते है।

गरबा/डांडिया
नवरात्रि के पहले दिन गरबा-मिट्टी के घड़े को फूल-पत्तियों और रंगीन कपड़ों के साथ सितारों से सजाया जाता है-फिर घट की स्थापना होती है। इसमें चार ज्योतियां प्रज्वलित की जाती हैं और महिलाएं उसके चारों ओर ताली बजाती फेरे लगाती हैं। कई जगहों पर मां दुर्गा की आरती से पहले गरबा नृत्य किया जाता है

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ढाक
नवरात्रि के समय मा दुर्गा के दरबार में ढाक के शोर ना सुनाई दे तो इसके बिना दुर्गा पूजा का जश्न अधूरा है। ढाक एक तरह का ढोल होता है जिसे मां के सम्मान में उनकी आरती के दौरान बजाया जाता है। इसकी ध्वनी ढोल-नगाड़े जैसी होती है।
लाल पाढ़ की साड़ी गारद, कोरियल
वैसे तो ये बंगाली परिधान है,जहां महिलाएं दुर्गा पूजा के दौरान लाल पाढ़ की साड़ी पहनती हैं, लेकिन अब लोग फैशन के हिसाब से परिधानों का चयन करने लगे है। किसी किस जगह पर आज भी लोग गारद और कोरियल दोनों ही लाल पाढ़ वाली सफेद साड़ियां पहनती है। इनमे फर्क बस इतना है कि गारद में लाल रंग का बॉर्डर कोरियल के मुकाबले चौड़ा होता है और इनमें फूलों की छोटी-छोटी मोटिफ होती हैं।
पुष्पांजलि
नवरात्रि के दौरान, खासकर अष्टमी के दिन, लोग हाथों में फूल लेकर मंत्रोच्चारण करते हैं। फिर मां को अंजलि देते हैं। पंडालों में जब बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होकर मां दुर्गा की पूजा करते है,तो नज़ारा देखने लायक होता है।
सिंदूर खेला
नवरात्रि के आखिरी दिन मां की अराधना के बाद शादीशुदा महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। जिसे सिंदूर खेला कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, इसलिए उनकी मांग भरी जाती है। मां को पान और मिठाई भी खिलाई जाती है।
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विसर्जन
नवरात्रि के बाद दसवें दिन मां की मूर्ति को पानी में विसर्जित किया जाता है। लोग रास्ते भर झूमते नाचते हुए मां को अंतिम विदाई देते है।

दशहरा/रावण वध
दुर्गा पूजा के 10वें दिन मनाया जाता है दशहरा। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और मेला घूमने जाते हैं। हिमाचल का कुल्लू दशहरा और कर्नाटक का मौसूर दशहरा प्रसिद्ध है जिसे देखने लोग विदेशों से भी आते हैं। इस दिन को विजयदशमी भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन मां दुर्गा ने महिसासुर राक्षस का वध किया था। साथ ही इसी दिन लंका में राम ने रावण का वध किया था। इसी के प्रतीक में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों में आतिशबाज़ी लगाकर आग लगाई जाती है और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है।
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