1.नारियल को संस्कृत में श्रीफल भी कहा जाता है। ‘श्री’ का मतलब लक्ष्मी होता है। इसलिए शुभ कार्य करने से पहले नारियल फोड़ने का मतलब है कि काम में सफलता मिलेगी और धन का आगमन होगा।
2.कई पूजा एवं अनुष्ठान में साबुत नारियल भी चढ़ाया जाता है। संस्कृत में नारियल के पेड़ को ‘कल्पवृक्ष’ कहते हैं। माना जाता है कि कल्पवृक्ष सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है। इसी मकसद से पूजा में भी भेंट स्वरूप श्रीफल चढ़ाया जाता है।
3.नारियल को त्रिदेव का प्रतीक स्वरूप भी माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नारियल पर बने हुए तीन छेद भगवान विष्णु, शिव और ब्रम्ह देव के नेत्र होते हैं। पूजा में इसे चढ़ाने से तीनों देवताओं की कृपा मिलती है।
4.चूंकि नारियल त्रिदेवों को दर्शाता है इसलिए पूजन के दौरान इसे कलश पर भी रखा जाता है। इसे लाल कपड़े में रखने की मान्यता है। माना जाता है कि ऐसा करने से तीनों देव प्रसन्न होते हैं और वो भक्तों पर अपनी दृष्टि बनाए रखते हैं।
5.नारियल को बहुत पवित्र माना जाता है इसलिए पूजन से पहले इसे फोड़ा जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से सकारात्मकता आती है और काम में सफलता मिलती है। 6.पूजन के बाद प्रसाद में नारियल और उसका पानी दिया जाता है। माना जाता है कि नारियल व्यक्ति के बाहरी और आंतरिक मन को दिखाता है। ऐसे में नारियल फोड़ने का मतलब है कि व्यक्ति के अंहकार को खतम करना।
7.प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इंसान के मस्तिष्क को नारियल की तरह माना गया है। कहते है कि जब तक नारियल का खोल तोड़ा नहीं जाता, तब तक उसका पौष्टिक तत्व नहीं मिल पाता है। ऐसे ही इंसान के अंहकार रूपी मस्तिष्क को हटाकर ही उसके अच्छे दिल को देखा जा सकता है।
8.नारियल को एक ऐसा पवित्र फल माना गया है, जो बहुत पवित्र होता है। क्योंकि इसका बाहरी और अंदरूनी हिस्सा दोनों अलग तरह के होते हैं। ऐसे ही इंसान के भी दो रूप होेते हैं। तरक्की पाने के लिए व्यक्ति को अपने बाहरी मुखौटे को हटाने की जरूररत है।
9.नारियल को पूजन में चढ़ाना इसलिए भी शुभ माना जाता है क्योंकि इसमें त्रिदेवों के वास के साथ मां लक्ष्मी का प्रतीक होता है। इसे भेंट करने से माना जाता है कि मां लक्ष्मी की आप पर हमेशा कृपा रहेगी।