विरासत में मिला आॅयल बाॅन्ड के बकाये का बोझ- बीजेपी
एक तरफ कांग्रेस की अगुवाई वाली विपक्षी दल सरकार पर टैक्स कम करने का दबाव बना रही है वहीं बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने पूर्व यूपीए सरकार पर भी अारोप लगाए हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि मनमोहन सरकार के कार्यकाल में भारी भरकम तेल बाॅन्ड और सब्सिडी के वजह से तेल पर लगने वाले टैक्स को कम नहीं किया जा सकता है। बीते 10 सितंबर को बीजेपी के आधिकारिक ट्वीटर हैंडल पर कहा गया है कि मोदी सरकार ने 1.3 लाख करोड़ रुपये का तेल बाॅन्ड का बिल भरा है। एेसे में तेल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी में कटौती नहीं किया जा सकता।
क्या है बीजेपी का दावा
इसी साल जून में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था- कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने 1.44 लाख करोड़ रुपये की आॅयल बाॅन्ड खरीदा था। ये ही नहीं, हमने 70,000 करोड़ रुपये का ब्याज भी भरा है। कुल मिलाकर, हमने 2 लाख करोड़ रुपये खर्च किया है। लेकिन जो सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या जिस बात को बीजेपी कह रही है वो आखिर कितना सच है? एक और सवाल ये भी है कि मौजूदा समय में तेल के दाम में इजाफे में इस आॅयल बाॅन्ड की भूमिका है?
क्या है सच
साल 2005 और 2010 के दौरान यूपीए सरकार द्वारा जारी किए गए 1.44 लाख करोड़ रुपये के आॅयल बाॅन्ड में से केवल 3,500 करोड़ रुपये ही एनडीए सरकार के दौरान मैच्योर हुए हैं। अगला बाॅन्ड साल 2021 में मैच्योर होगा। Special Securities Issued to oil market Company in Lieu of Cash Subsidy के मुताबिक, केवल दो बाॅन्ड या सिक्योरिटीज ही एनडीए सरकार के दौरान मैच्योर हुआ है जिसकी कुल कीमत 1.3 लाख करोड़ रुपये है। इस एनेक्सचर को पढ़ने के बाद पता चलता है कि इनमें से केवल दो सिक्योरिटीज ही साल 2015 में मैच्योर हुए हैं और बाकी के साल 2021 से 2026 के बीच में मैच्योर होंगे। वित्त वर्ष 2017-18 के बजट रिसिप्ट में भी इसी बात का दावा किया गया है।
साल 2014-18 के बीच मोदी सरकार द्वारा इसपर जमा किया गया ब्याज 40,226 करोड़ रुपये है। इसके बारे में पियूष गोयल ने इसी साल जून में जानकारी दी थी। मौजूदा एनडीए सरकार ने 1.3 लाख करोड़ रुपये का ही आॅयल बाॅन्ड का बोझ था। साल 2014-18 के दौरान आॅयल बाॅन्ड और ब्याज दर लगभग 44,000 करोड़ रुपये है जिसमें से 3,500 करोड़ रुपये मूलधन और बाकी ब्याज है।
आॅयल बाॅन्ड क्या होता है और इसे क्यों जारी किया जाता है?
आॅयल बाॅन्ड एक खास तरह का सिक्योरिटी या बाॅन्ड होता है जिसे भारत सरकार पब्लिक एंटीटी जैसे आॅयल मार्केटिंक कंपनियां, फूड काॅर्पाेरेशन आॅफ इंडिया और उर्वरक कंपनियों को जारी करती है। ये बाॅन्ड एक ऐसा कर्ज होता है जो जारी होने वाले वित्त वर्ष के राजकोषिय घाटे में नहीं दर्शाया जाता है। सरकारी सिक्योरिटीज के उलट ये एसएलआर सिक्योरिटीज के लिए मान्य नहीं होते हैं। जिन तेल कंपनियों को नकदी की जरूरत होती है वो इसे बैंक और इंश्योरेंस कंपनियों को बेच सकती है। इसके साथ ही उन्हें सरकार से भी ब्याज मिलता है। पहली बार इसे साल 2005-06 और 2009-10 के बीच में जारी किया गया था।
मौजूदा समय में पेट्रोल-डीजल पर कितना लगता है टैक्स ?
बीते चार साल में पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाले टैक्स पर नाटकीय रूप में बढ़ोतरी देखने को मिली है। जून 2015 में जब कच्चे तेल के दाम 28 डाॅलर प्रति बैरल थे तो उस दौरान एनडीए सरकार को भारी मुनाफा हुआ था। अगर राजधानी दिल्ली की बात करें तो साल 2014 में जहां एक लीटर पेट्रोल पर लोगों को 35 फीसदी टैक्स देना होता था वहीं आज उन्हें 45 फीसदी टैक्स देना होता है। मुंबई में ये और भी अधिक हो सकता है।
केंद्र सरकार ने आम लोगों को नहीं दिया तेल से होने वाले मुनाफे का फायदा
2014 से 2018 के दौरान तेल पर लगने वाले टैक्स में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली है। अप्रैल 2014 में पेट्रोल पर लगने वाले सेंट्रल एक्साइज 9.48 रुपये प्रति लीटर था जो कि साल 2018 में बढ़कर 19.48 रुपये प्रति लीटर हो गया है। डीजल की बात करें तो इसपर भी एक्साइज ड्यूटी में 4 गुना की बढ़ोतरी हुई है। साल 2014 में एक लीटर डीजल पर जहां 3.56 रुपये देना होता था वो अब बढ़कर 15.53 रुपये प्रति लीटर हो गया है। ऐसे में इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है कि पीएम मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार को तेल से फायदा तो हुआ है लेकिन सरकार ने इसका फायदा आम लोगों तक नहीं पहुंचाया है।