असलियत और भी डरावनी है- कहा तो ये भी जा रही है कि देश में रोजगार की दर इससे भी तेजी से गिर रही है और आंकड़ों में सिर्फ आंशिक सच्चाई नजर आ रही है। दरअसल आंकड़ों में नौकरी से बाहर निकलने वाले सदस्यों की भी संख्या शामिल है। नौकरी से बाहर निकलने वालों में से ज्यादातर व्यक्ति फिर से कहीं काम करने लगते हैं। नौकरी में आते ही उनका नाम एक बार फिर से नए सब्सक्राइबर की सूची में पहुंच जाता हैं। जिसके चलते आंकड़ों में जमीनी हकीकत नजर नहीं आती है।
SBI की रिपोर्ट कहती है कि पहली नौकरी पाने वाले की संख्या एक साल पहले से भी कम है। यदि ईपीएफओ ( EPFO ) के नए सब्सक्राइबर्स में से फिर से नौकरी पकड़ने वालों की संख्या को घटा दी जाए तो वर्ष 2019-20 में नए पेरोल की संख्या 60.80 लाख ही थी जो कि एक वर्ष पहले के मुकाबले 28.90 लाख कम है।
आपको बता दें कि इसी महीने कुछ दिनों पहले EPFO यानि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) की ओर से हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर, 2017 से अब तक EPFO के साथ जुड़ने वाले लोगो ( NEW MEMBER TO EPFO ) की संख्या बड़ी संख्या वृद्धि हुई है। 2018-19 और 2019-20 में EPFO के सदस्यों की संख्या में 28 फीसदी की बढ़त देखी गई है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में इसके मेंबर्स की संख्या 61.12 लाख बढ़कर 2019-20 में 78.58 लाख हो गई। EPFO का दावा है कि इस वित्त वर्ष में नवंबर तक 62 लाख लोगों को नई नौकरियां मिली हैं । लेकिन अगर सिर्फ 2019 के परिप्रेक्ष्य में देखें तो आंकड़ें कुछ और ही कहानी कहते हैं।