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पीएम मोदी के विदेशी दौरे से 5 साल में भारत को क्या फायदे मिले, पढ़ें पूरी रिपोर्ट कार्ड

locationनई दिल्लीPublished: May 01, 2019 09:38:18 am

Submitted by:

Ashutosh Verma

बीते पांच सालों में 92 विदेशी दौरों पर 57 देशों में गए पीएम मोदी।
कुछ देशों के प्रतिनिधियों से एक से भी अधिक बार की मुलाकात, पाकिस्तान दौरे से नहीं हुआ कोई फायदा।
FDI से लेकर एनर्जी सिक्योरिटी को लेकर भारत को मिली बड़ी सफलता।

PM Modi

पीएम मोदी के विदेशी दौरे से 5 साल में भारत को क्या फायदे मिले, पढ़ें पूरी रिपोर्ट कार्ड

नई दिल्ली। बीते पांच सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरे हमेशा सुर्खियों में रहे। कभी अपने विदेशी समकक्षों के साथ प्रगाढ़ रिश्तों को लेकर तो कभी विपक्षी दलों के तंज को लेकर। 2014 के बाद से ही पीएम मोदी के विदेशी दौरों पर होने वाले खर्च और उनके फायदे-नुकसान को लेकर बहस भी खूब हुआ है। विपक्षियों के सवालों का जवाब देते हुए भारतीय जनता पार्टी के समर्थक कहते रहे कि इससे वैश्विक स्तर पर भारत का कद उंचा हुआ है और देश वैश्विक कूटनीतिक स्तर पर भी बहुत आगे बढ़ा है। आज हम आपको पीएम मोदी के इन दौरों से भारत पर होने वाले असर के बारे में बताने जा रहे हैं।

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साल 2014 में सत्ता की बागडोर संभालने वाले पीएम मोदी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में कुल 92 विदेशी दौरे किए, इस दौरान वो कुल 57 देशों में गए। पीएम मोदी के इन दौरों की एक खास बात यह भी रही कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तुलना में पीएम मोदी के ये दौरे तीन गुना अधिक हैं। मोदी के इन दौरों को ध्यान से देखा जाए तो एक बात यह भी साफ होती है कि इनमें से कई दौरों पर हुए समझौते से भारत को कुछ खास हासिल नहीं हुआ है। करीब एक तिहाई दौरे तो किसी प्रकार के समिट को लेकर रहे। लेकिन, कई दौरे ऐसे रहें जब विदेशी जमीन पर नई दिल्ली की शान भी बढ़ी है। इस दौरान वो कुछ देशों के प्रतिनीधियों से एक से भी अधिक बार मिले। इनमें जापान के शिंजो आबे, रूस के व्लादिमीर पुतिन रहे, जिनके देश भारत को औद्योगिक निवेश और रक्षा तकनीक को लेकर मदद करता है। इन दौरों पर उन्होंने उभरते देशों की श्रेणी में भारत की शक्ति को वैश्विक स्तर पर दिखाया।

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मनमोहन सिंह के कार्यकाल की तुलना में 50 फीसदी से भी अधिक बढ़ा FDI

बीते पांच सालों के दौरान भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ( Foreign Direcet Investment ) के तौर पर 193 अरब डाॅलर आया है। UPA सरकार के अंतिम पांच साल की तुलना में यह 50 फीसदी से भी अधिक रकम है। इसी समय, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार मुहैया कराने के कई प्रयास किए गए, लेकिन इसके बावजूद एफडीआई से केवल भारत के सर्विस और पूंजी आधारित उद्योगों को ही फायदा मिला। श्रमिक वर्ग को FDI से कोई फायदा मिलते नहीं दिखाई दिया। अपने व्यापारिक प्रतिद्वंदी चीन से भारत निवेश प्रतिबद्धता हासिल करने में कामयाब तो रहा, लेकिन अभी तक इनकी शुरुआत नहीं हो सकी है। पिछले चार सालों में चीन से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तौर पर 1.5 अरब डाॅलर ही आ सके हैं। बता दें कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साल 2014 से अगले पांच सालों में 20 अरब डाॅलर की एफडीआई की बात की थी।


एनर्जी सिक्योरिटी बढ़ाने में मिली मदद

मोदी सरकार में ही भारत ने पहली बार अमरीका से कच्चा तेल और एलपीजी कार्गो खरीदना शुरू किया था। बीते पांच सालों में, भारत के लिए तेल को लेकर रूस और खाड़ी देशों से भी कई समझौते किए। पीएम मोदी की वजह से ही दुनिया की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी सउदी अरामको भारत की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी में निवेश के लिए तैयार हुई। यूएई अब भारत के आॅयल रिजर्व बनाने में भी मदद करेगा। इससे वित्तीय स्तर पर भारत को मजबूती मिलेगी। कुल मिलाकर देखें तो भारत को उर्जा के स्तर पर सुरक्षित करने के लिए पीए मोदी खाड़ी देशों से बेहतर रिश्ते बनाने में कामयाब रहे हैं।

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भारत में आए कई बड़े प्रोजेक्ट्स

इन पांच सालों में पीएम मोदी कई देशों को भारत में रणनीतिक प्रोजेक्ट के लिए तैयार किए हैं। किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री द्रवारा इजरायल के दौर पर पीएम मोदी ने तेल अवीव से एडवांस रक्षा से लेकर पानी के कई तकनीक को लाने में कामयाब रहे हैं। जापान के साथ, भारत बुलेट ट्रेन बना रहा है। हालांकि, इसकी धीमी गति और भूमि अधिग्रहण को लेकर उनकी काफी आलोचना भी हुई है। साल 2016 में, फ्रांस से 36 रफाल लड़ाके विमान खरीदने का सौदा किया है। इसपर भी विपक्षी दलों ने मजबूूती से सरकार को घेरने का प्रयास किया है।

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दुनिया में बढ़ी भारत की साख

अपने दौरे से पीएम मोदी ने दुनिया में भारत की साख को बढ़ाने के भी कई प्रयास किए हैं। उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में भारत निवेश के लिए एक बेहतर जगत बनता जा रहा है। उन्होंने डावोस में वल्र्ड इकोनाॅमिक फोरम को भी संबोधित किया। पिछले साल वुहान शहर में मोदी ने शी जिनपिंग से अनौपचारिक मुलाकात भी की। इसके बाद हिमालय क्षेत्र में दोनों देशों की सेनाओं की भूराजनीतिक तनाव कम करने में भी मदद मिली है। इन सभी दौरों के बीच पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का दौरा भारत के लिए किसी भी मायने में सफल नहीं रहा।

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