सेना ने लिए हैं कई तरह के फंड
भारतीय सेना के पास तीन ऐसे फंड हैं जहां देशवासी योगदान दे सकते हैं। इनमें सियाचिन हिमस्खलन और पठानकोट हमले के बाद साल 2016 में गठित किया गया सेना कल्याण कोष, सेना केन्द्रीय कल्याण कोष और पैरा-मेडिकल पुनर्वास केंद्र पुणे है। ये फंड उन सशस्त्र बलों के परिवारों के लिए है जिन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है। हालांकि, अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि इन फंड्स ने आईएलएंडएफएस फंड में निवेश किया है या नहीं। इसमें प्रमुख राष्ट्रीय रक्षा कोष भी है जिसे राष्ट्रीय रक्षा प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए नकद और स्वेच्छा से स्वैच्छिक दान का प्रभार लेने के लिए स्थापित किया गया था।
ऐसे होता है फंड का इस्तेमाल
इस फंड का इस्तेमाल सशस्त्र बलों, अद्र्धसैनिक बलों के सदस्यों और उनके आश्रितों के लिए किया जाता है। 31 मार्च 2018 तक, कुल खर्च 64.75 करोड़ रुपए का रहा, कुल रसीद 83.35 करोड़ रुपए का रहा। साथ ही कुल बैलेंस 1,115.18 करोड़ रुपए का रहा। पूर्व-सर्विसमेन के लिए भी एक विभाग है जोकि वॉर में हताहतों की विधवाओं के लिए होता है। यह कर्तव्यों के दौरान दुर्घटना के कारण मृत्यु, आतंकी हिंसा के कारण मृत्यु, युद्ध या सीमा पर दुश्मन की कार्रवाई के दौरान मौत या आतंकवादियों / आतंकवादियों के खिलाफ मौत और युद्ध या दुश्मन की कार्रवाई में दुश्मन की कार्रवाई के दौरान मौत विशेष रूप से नोट किया गया है पहले दो मामलों में 10 लाख रुपए और बाद के दो मामलों में क्रमश: 15 और 20 लाख रुपए हैं। युद्ध विधवाओं को कई अन्य लाभ प्रदान किए जाते हैं।
बेकार हुए फंड्स के निवेश
घायल और सेना विधवाओं का समर्थन करने के उद्देश्य से सैनिकों द्वारा गठित इन फंडों ने रेटिंग एजेंसियों द्वारा चित्रित रेटिंग और सुरक्षा आश्वासनों पर विचार करते हुए इन बॉन्ड्स में निवेश किया है। सेनाओं की सदस्यता और घटना के मामले में लाखों सेनाओं और उनकी विधवाओं को सहायता प्रदान करता है। लेकिन, आईएलएंडएफएस डिफॉल्ट के बाद ये सभी निवेश लगभग बेकार हो गए हैं। जिसके बाद लाखों सशस्त्र बलों को मिलने वाला हित व भविष्य को को वित्तीय तौर पर खतरे में डाल दिया है।
बन सकता है चुनावी मुद्दा
हालांकि, प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इसके बारे में कार्रवाई को लेकर सेना रक्षा मंत्रालय से गुहार लगा सकता है। चूंकि, यह सुरक्षा फंड तैयार करना सेना का गैर-सरकारी प्रयास है, ऐसे में सरकार इसको लेकर फौरी तौर पर समाधान नहीं निकाल सकती है। हालांकि, सरकारी सूत्रों ने कहा कि पुलावामा अटैक व उसकी जवाबी कार्रवाई के बाद आगामी चुनाव में यह एक मुद्दा बन सकता है।
Read the Latest Business News on Patrika.com. पढ़ें सबसे पहले Business news in hindi की ताज़ा खबरें हिंदी में पत्रिका पर।