मोदी सरकार में 65 पायदान चढ़ा भारत उन्होंने कहा कि संप्रग-2 के दौरान पांच वर्षाें में इस सूची में भारत हर वर्ष पिछड़ रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सूची में भारत को दुनिया के 50 देशों में शामिल करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन अभी भी भारत 77वें स्थान पर आ सका है। उन्होंने कहा कि दुनिया के 190 देशों में भारत इस वर्ष 77वें स्थान पर आने में सफल रहा है। इस तरह वर्ष 2014 में 142वें स्थान रहा भारत सुधारात्मक उपायों के बल पर चार वर्षाें में 65 पायदान चढ़ने में सफल रहा है। लेकिन अभी भी यह प्रधानमंत्री के लक्ष्य से 27 पायदान पीछे है।
संप्रग सरकार में भारत आने से कतराते थे निवेशक जेटली ने कहा कि संप्रग के 10 वर्षाें के कार्यकाल में भ्रष्टाचार चरम पर था। नीतिगत लकवा मार गया था और सुधार बंद हो गया था। संप्रग-2 के दौरान हर वर्ष भारत की स्थिति खराब हुई थी। उस दौरान पांच वर्षाें में क्रमश: 134, 132, 132, 134 और फिर 142वें पायदान पर रहा था। यह संप्रग के दौरान का सबसे खराब प्रदर्शन था। भारत में कारोबार करना बड़ा कठिन बन गया था। निवेशक भारत आने से कतराने लगे थे और वे देश से निवेश वापस निकालने लगे थे।
भारत को 50वें पायदान पर लाना है लक्ष्य वित्त मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2014 में सरकार के उद्देश्यों की घोषणा की थी और उसमें उन्होंने देश को विश्व बैंक की इस सूची में 50वें पायदान पर लाने का लक्ष्य रखा था। जब प्रधानमंत्री ने यह लक्ष्य तय किया था तब भारत की स्थिति में 92 पायदान की सुधार की जरूरत थी जो असंभव प्रतीत हो रहा था, लेकिन चार वर्षाें में 65 पायदान का सुधार हुआ है और अब यह लक्ष्य संभव प्रतीत होने लगा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के पहले दो वर्षाें में भारत 130वें पायदान पर रहा और तीसरे वर्ष में 30 पायदान चढ़कर 100वें स्थान पर आ गया। अब चौथे वर्ष में 23 पायदान का सुधार हुआ है और यह 77वें स्थान पर है।
विश्व बैंक की नीतियों के अनुरूप किया बदलाव उन्होंने कहा कि विश्व बैंक इस सूची को 10 विभिन्न श्रेणियों के आधार पर तैयार किया जाता है। इसमें देशों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होती और प्रत्येक देश हर श्रेणी में आगे बढ़ने की कोशिश करता है। इसके लिए कानून, नियमन, नीतिगत निर्णयों और प्रशासनिक सुधार करने होते हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में सरकार ने उन सभी 10 श्रेणियों पर काम करना शुरू किया और कानूनी या नीतिगत सुधार ही इसके लिए काफी नहीं था। होने वाले बदलाव का प्रभाव जमीनी स्तर पर दिखने भी चाहिए थे। सुधार और उन्नयन की समय सीमा होती है और उसी के अनुरूप काम करना होता है।