केंद्र सरकार ( Union govt ) की तरफ से जारी किये गए इन आंकड़ों के मुताबिक साल 2019-20 की GDP ग्रोथ रेट 4.2 फीसदी रही है जो कि पिछले 11 सालों में सबसे कम हैं। वहीं अगर सिर्फ चौथी तिमाही यानि जनवरी से मार्च 2020 की बात करें तो ये ग्रोथ रेट मात्र 3.1 फीसदी रही है। ( 2018-19 में जीडीपी ग्रोथ रेट 6.1 प्रतिशत था )
दरअसल देश की अर्थव्यवस्था पिछले 7-8 तिमाही से सुस्ती के दौर में थी यानि हमारी आर्थिक वृद्धि लगातार घट रही थी। कोरोना ने इस समस्या को और गंभीर करने का काम किया है लेकिन पूरा दोष सिर्फ कोरोनावायरस से उत्पन्न परिस्थितियों पर थोप देना सरासर गलत होगा। जनवरी-मार्च 2020 की तिमाही को अगर हम पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही से कंपेयर करें तो आपको पता चलेगा कि उस तिमाही देश की आर्थिक ग्रोथ रेट 5.7 फीसदी थी।
आपको बता दें कि उस वक्त जबकि वित्तीय वर्ष 2019-2020 के आर्थिक वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा था सरकार ने इसके 5 फीसदी होने की उम्मीद जताई थी । आर्थिक आंकड़ों का लेखा जोखा रखने वाली सरकारी संस्था राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) ने फाइनेंशियल ईयर 2020 के लिए सरकार का इकनॉमिक ग्रोथ का अनुमान 6.8 परसेंट से घटकर 5 प्रतिशत बताया था। उस वक्त दुनिया में कोरोना का नामो निशान नहीं था यानि मोदी सरकार ( Modi Govt ) को भी अपनी कम होती आर्थिक ग्रोथ ( Economic Growth ) का अंदाजा था लेकिन सरकार इसे बढ़ाने के लिए कर क्या रही थी। ये आप खुद पता कर सकते हैं। ( सरकार के एजेंडे में राम मंदिर बनाना था )
आने वाली तिमाही में और बुरे होंगे हालात-
चौथी तिमाही की जो रिपोर्ट आई है उसको लेकर कहा जा रहा है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का सबसे कमजोर आंकड़ा है। लेकिन क्या इसे विकास दर में गिरावट का सबसे बुरा दौर मान लेना चाहिए नहीं क्योंकि आने वाली तिमाही में इन आंकड़ों के और भी कम होने की उम्मीद है । इसकी वजह साफ है । पिछले 2 महीने से लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था बिल्कुल रूकी हुई है। ये लॉकडाउन जून तक चलना है जिसमें से 2 महीने बीत चुके हैं यानि वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के आंकड़ें सरकार के साथ आम आदमी की नींद भी उड़ा सकते हैं।
इन आंकड़ों सिर्फ कृषि क्षेत्र के आंकड़े राहत देते हैं जिसमें वृद्धि दर बढ़कर 5.9 फीसदी पर पहुंच गई, जो एक साल पहले की समान तिमाही में 1.6 फीसदी थी।
अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों एसऐंडपी ( S and P ) ग्लोबल और फिच रेटिंग्स ( Fitch Ratings ) के अलावा कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अप्रैल से शुरू हुए चालू वित्त वर्ष में चार दशक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी।