दरअसल हाल के दिनों में में केंद्र सरकार व आरबीआर्इ के बीच चल रहे विवाद के बाद अब ये कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने सेक्शन 7 को लागू किया है जो कि पहले इस्तेमाल नहीं होता था। इसी सेक्शन के तहत अपने अधिकारों का फायदा उठाते हुए सरकार ने अारबीआर्इ गवर्नर उर्जित पटेल को कर्इ लेटर्स भेजा है। इन लेटर्स में सरकार ने गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफसी) को तरलता के साथ कमजोर बैंकों को पूंजी जरूरत आैर माइक्रो, छोटे व मझोले एंटरप्राइजेज की मदद करने के अादेश दिया था।
क्या है सेक्शन 7?
भारतीय रिजर्व बैंक सरकार से स्वतंत्र एक इकाई है क्योंकि यह अपने फैसले खुद लेता है। हालांकि, कुछ मामलों में इसे सरकार को भी सुनना है। आरबीआई एक्ट के तहत यह प्रावधान सेक्शन 7 में निहित है जो कि कुछ इस प्रकार है।
1. इस सेक्शन के तहत केंद्र सरकार के पास समय-समय पर आरबीआर्इ को दिशा-निर्देश देने का अधिकार होता है। लेकिन इसके लिए सरकार को जनहित को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय बैंक के गवर्नर से बात करनी होती है।
2. इस तरह के किसी भी दिशा के अधीन, बैंक के मामलों और व्यापार की सामान्य अधीक्षण और दिशा को केंद्रीय निदेशक मंडल को सौंपा जाएगा जो सभी शक्तियों का उपयोग कर सकता है। इसके साथ ही बैंक अपने तरफ से किए जाने वाले सभी कार्यों को कर सकता है।
3. गवर्नर के अनुपस्थिति में डिप्टी गवर्नर को केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करना हाेगा। डिप्टी गवर्नर के पास भी वो सभी अधिकार मौजूद होंगे जो गवर्नर होंगे ।
क्यों सरकार ने लागू किया सेक्शन 7
इस सेक्शन के अनुसार, साफ तौर पर केंद्र सरकार के पास जनहित में रिजर्व बैंक को आदेश देने का अधिकार है। आमतौर पर अारबीआर्इ किसी भी कार्य को करने के लिए सरकार के निर्देश का पालन करने की आधीन नहीं है। अब सवाल यह है कि आखिर क्यों सरकार ने सेक्शन 7 को लागू किया। दरअसल बीते कुछ समय में सरकार व आरबीआर्इ के बीच कुछ फैसलों को लेकर मतभेद रहे हैं। सरकार का मानना है कि प्राॅम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के तहत सरकार का मानना है कि छोटे एवं मझोले एंटरप्राइजेज को बैंकों द्वारा उधार देने वाले नियमों को ढील दिया जाना चाहिए। लेकिन इसपर केंद्रीय बैंक का कहना है कि इस तरह के कदम संकट के स्थिति पैदा हो सकती है। बता दें कि सितंबर माह में IL&FS सकंट के बाद वित्तीय बाजार की हालत खराब है। इसके बाद गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों ने आैर तरलता के लिए सरकार से पैरवी कर चुके हैं। लेकिन आरबीआर्इ ने इसको लेकर भी अपना रुख नहीं बदला।