वैश्विक ग्रोथ पर क्या पड़ेगा असर?
कच्चे तेल के भाव में इजाफे से हाउसहोल्ड इनकम प्रभावित होने के साथ-साथ उपभोक्ता खर्च भी कम हो जाएगा। चीन कच्चे तेल के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है वहीं भारत तीसरा सबसे बड़ा आयातक है। एेसे में इन देशाें की मुद्रास्फिति बढ़ने की आशंका है। वहीं, ठंड के मौसम आने के बाद उपभोक्ता दूसरे एनर्जी विकल्पों के तरफ आकर्षित होंगे जैसे बायोफ्यूल, प्राकृति गैस आदि। हालांकि अभी इसमें थोड़ा समय है। इन्डोनेशिया ने पहले ही बायोफ्यूल को बढ़ावा देने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है।
र्इरान आैर ट्रम्प का बाजार पर कितना होगा असर?
कच्चे तेल को लेकर जियोपाॅलिटिक्स अभी भी एक वाइल्ड कार्ड की तरह है। अमरीका द्वारा र्इरान पर लगाए गए प्रतिबंध को लेकर अभी मध्य-पूर्वी देशों के निर्यात पर असर देखने को मिलेगा। वहीं अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आेपेक देशों पर तेल उत्पादन को लेकर दबाव बना रहे हैं। एक बात ये भी ध्यान देने वाली है कि वेनेजुएला, लिबीया आैर नाइजीरिया जैसे देशों में आर्थिक अस्थिरता से भी कच्चे तेल के उप्तादन को झटका लगा है। हालांकि वैश्विक रेटिंग एजेंसी गोल्डमैन सैश ने अनुमान लगाया है कि कच्चे तेल का भाव 100 डाॅलर प्रति बैरल के पार नहीं जा सकेगा।
किसका होगा फायदा, किसे मिलेगी मात
अधिकतर तेल उत्पादक देश दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाआें में से एक हैं। सउदी अरब इस लिस्ट में सबसे पहले स्थान पर है जहां साल 2016 के मुताबिक तेल उत्पादन से होने वाली कमार्इ जीडीपी में 21 फीसदी की हिस्सेदारी रखती है। ये आकंड़ा रूस से दाेगुना है जो कि दुनिया के 15 उभरते बाजारों में से एक है। नाइजीरिया आैर कोलम्बिया को भी इससे फायदा होने वाला है। कच्चे तेल से इकट्ठा होने वाले राजस्व से इन देशों को अपना बजट समेत राजकोषिय घाटा की भरपार्इ करने में भी मदद मिलेगी। वहीं भारत, चीन, ताइवान, चिली, तुर्की, इजिप्ट आैर यूक्रेन जैसे देशों में इससे नुकसान होगा। कच्चा तेल खरीदने के लिए इन देशों को पहले से अधिक खर्च करने होंगे जिससे इन देशों के चालू खाते पर भी असर देखने को मिलेगा।
दुनियाभर के देशों के मुद्रास्फिति पर क्या होगा असर?
आमतौर पर एनर्जी प्राइस का सीधा असर दैनिक उपभोग की वस्तुआें पर देखने को मिलता है। एेसे में नीति बनाने वाले लोगों के लिए भी चुनौती है। लेकिन तेल में लगातार बढ़ रहे इन दामों से मुद्रास्फिति में भी बढ़ोतरी होगी। यदि मुद्रास्फिति में तेजी आएगी तो केंद्रीय बैंकों को अपने मौद्रिक नीतियों में ढील बरतनी होगी। भारतीय रिजर्व बैंक कच्चे तेल के भाव को लेकर पहले से ही सतर्क हैं।