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गरीबों का पेट भरने के लिए इस भारतीय ने छोड़ी लाखों की नौकरी

Published: Sep 22, 2015 01:45:00 pm

गरीबों का पेट भरने के लिए छोड़ी लाखों की नौकरी, रोजाना 400 लोगों का भरते हैं पेट

narayanan krishnan

narayanan krishnan

नई दिल्ली। पेट की भूख के लिए इनसान हर काम करता है। इसी के लिए वो नौकरी, मजदूरी यहां तक भीख भी मांगता है, लेकिन ऎसे लोग दुनिया में कम ही होते हैं जिन्हें उन गरीबों की भूख की भी परवाह होती है। नारायण कृष्णन दुनिया भर के कुछ उन चंद लोगों में से एक हैं जिनके जीवन का पहला लक्ष्य गरीबों का पेट भरना है।

कहां से मिली कुछ करने की प्रेरणा

नारायण पेशे से एक शेफ हैं और एक फाइव स्टार के लिए काम करते हैं। उन्हें स्विटजरलैंड में एक नौकरी का ऑफर भी मिला था, लेकिन यूरोप जाने से पहले एक बार उन्हें किसी काम के चलते अपने घर जाना पड़ा और यहीं पर उनके जीवन का मकसद भी बदल गया। उन्होंने बताया कि एक बार उन्होंने एक बुजुर्ग को अपनी भूख मिटाने के लिए अपना ही मल खाते देखा, जिसे देखकर उन्हें बेहद दुख पहुंचा। कृष्णन कहते हैं कि ऎसा देख मुझे एक सेकेंड को झटका सा लगा और इसके तुरंत बाद मैंने उस बुजुर्ग को खाना खिलाना शुरू किया और यहीं से सोच लिया कि मैं अपने जीवन में यही काम करूंगा।

ऎसा देख छोड़ी नौकरी
नारायण कृष्णन एक यंग और टैलेंटेड व्यक्ति हैं और उन्होंने अपनी लाखों रूपए की नौकरी सिर्फ गरीबों का पेट भरने के मकसद से छोड़ दी थी। दुनिया में शायद ही ऎसे लोग होते होंगे जोकि अपनी लाखों रूपए वाली नौकरी इस तरह के काम के लिए छोड़ते हों। कृष्णन 2002 में मदुरई शहर के एक मंदिर में गए थे, जहां उन्होंने एक व्यक्ति को पुल के नीचे बैठे देखा था। व्यक्ति की दयनीय स्थिति को देखते हुए उन्हें एक बड़ा झटका लगा और एक हफ्ते के भीतर नौकरी छोड़ अपने घर लौट आए और अपने नए मिशन की ओर उन्होंने कदम बढ़ाने का फैसला किया। नारायण कहते हैं कि उस दृश्य को देखने के बाद गरीबों के लिए कुछ करने की आग आज भी उनके दिल में देहकती है।

यहां से हुई अक्षया की शुरूआत

खुद का पेट ना भर पाने वालों की मदद के लिए 2003 में नारायण ने अपना “अक्षया ट्रस्ट” नाम का एनजीओ शुरू किया। जहां वह 12 लाख लोगों को पेट भर खाना मुहैया कराते हैं। वह कहते हैं कि क्योंकि भारत में गरीबी का स्तर बहुत ज्यादा है इसके कारण कई सारे मानसिक रूप से अस्वस्थ और बुजुर्ग लोगों के पास शहरों की सड़कों के किनारे अपना जीवन जीने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता है। नारायण अक्सर सड़कों पर भूख से तिलमिला रहे लोगों को पेट भर भोजन कराते हैं। हर दिन वह कम से कम 400 लोगों का पेट भरते हैं।

घर का किराया भी गरीबों के नाम
गरीबों का पेट भरने के लिए प्रति दिन 327 डॉलर की लागत लगती है और डोनेशंस से मिलने वाली राशि की मदद से पूरा महीने भूखों का पेट भरने के लिए पूरा पैसा नहीं जमा हो पाता है। इसके लिए कृष्णन अपने घर का किराया भी इन गरीबों का पेट भरने के लिए खर्च करते हैं। कृष्णन अपने कुछ सहकर्मियों के साथ अक्षया के रसोई घर में ही सोते भी हैं। एनजीओ की स्थापना के लिए उन्होंने 2002 में अपनी पूरी जमा पूंजी भी लगा दी थी और इसके लिए उन्होंने किसी से भी मदद नहीं मांगी।

मां ने दिया साथ

कृष्णन बताते हैं कि उनके माता-पिता को इस बात का दुख है कि उन्होंने मेरी पढ़ाई पर लाखों रूपए खर्च किए और मैं बदले में कोई अच्छी नौकरी करने की बजाए ये काम कर रहा हूं। उन्होंने कहा, मैंने अपनी मां से कहा था कि आप प्लीज मेरे साथ एक बार आओ और देखो मैं क्या काम करता हूं। वापस घर लौटने के बाद मेरी मां ने कहा तुम पूरा जीवन इन लोगों को खाना खिलाओ, मैं तुम्हारे साथ हूं और तुम्हें मैं खाना खिलाउंगी। मां की ये बात सुनने के बाद नारायण को एक नई शक्ति मिली और आज वो कहते हैं कि मैं अपने काम से बेहद खुश हू और मैं अपने लोगों के साथ जीना चाहता हूं।

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