किसी भी देश में पेट्रोल-डीजल पर पूरा जीएसटी नहीं
लेकिन इससे पहले की पेट्रोलियम पदार्थों पर जीएसटी लगे, केन्द्र को ये देखना होगा कि क्या वो 20,000 करोड़ रुपए के इनपुट टैक्स क्रेडिट को अपने हाथ से जाने देना चाहती है या नहीं। सरकार की ये कमार्इ पेट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस, जेट फ्यूल आैर कच्चे तेल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने से होती है। अधिकारी ने बताया कि, विश्व के किसी भी देश ने अभी तक पेट्रोलियम पदार्थों पर पूरी तरह से जीएसटी से नहीं लगाया गया है आैर इसलिए भारत में जीएसटी के साथ वैट लगाया जा सकता है। हालांकि आखिर कब तक पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के अंतर्गत लाया जाएगा ये एक राजनीतिक फैसला होगा आैर केन्द्र आैर राज्यों को साथ मिलकर लेना होगा।
अभी केन्द्र आैर राज्य सरकारें मिलकर कितना वसूलती हैं टैक्स
वर्तमान में केन्द्र सरकार पेट्रोल पर 19.48 रुपए आैर डीजल पर 15.33 रुपए प्रतिलीटर का एक्साइज ड्यूटी लगाती है। वहीं इसके अलावा सभी राज्य वैट भी वसूलते हैं। सबसे कम टैक्स अंडमान आैर निकोबार द्वीप पर 6 फीसदी का सेल्स टैक्स के रूप लगता है। देशभर में पेट्रोल पर सबसे अधिक वैट मुंबर्इ में लगाया जाता है जो कि 39.12 फीसदी हैै। वहीं डीजल पर सबसे अधिक वैट लगाने की बात करें तो इसमें तेलांगना शीर्ष पर है। तेलांगना में डीजल पर 26 फीसदी वैट लगता है। दिल्ली की बात करें ताे यहां पर पेट्रोल पर 27 फीसदी वैट आैर डीजल पर 17.24 फीसदी वैट लगाया जाता है। देश के कर्इ राज्यों द्वारा पेट्रोल पर वैट आैर केन्द्र द्वारा एक्साइज ड्यूटी मिलाकर कुल मिलाकर 45-50 फीसदी टैक्स लगता है। वहीं डीजल की बात करें ताे इसपर 35-40 फीसदी कुल टैक्स लगता है। एेसे में यदि पेट्रोल-डीजल के दाम को जीएसटी के अंतर्गत लाया जाता है तो केन्द्र के इस फैसले के बाद 26 रुपए तक की कमी हो सकती है। हालांकि से राज्यों पर निर्भर करेगा कि आखिर वो अपने तरफ से कितना वैट लगाती है।
केन्द्र नहीं बल्कि राज्यों की होती है अधिक कमार्इ
एेसे में यदि पेट्रोल-डीजल को 28 फीसदी के टैक्स स्लैब में लाया जाता है तो इससे केन्द्र व राज्य सरकारों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। अधिकारी ने बताया कि केन्द्र सरकार के पास इतना बजट नहीं है कि वो राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपार्इ कर सके। एेसे में राज्यों को वैट का लगाने की छूट दी जाएगी। लेकिन इसके साथ ही ये भी ध्यान में रखा जाएगा कि कहीं ये माैजूदा टैक्स से अधिक न हो। बीते साेमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने फेसबुक में लिखा था कि, जब तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो राज्यों को मूल्यानुसार वैट वसूलने से अधिक फायदा होता है वहीं केन्द्र सरकार एक समान ही टैक्स वसूलती है। एेसे में जब तेल का दाम बढ़ता है तो राज्यों की अधिक कमार्इ होती है।
पिछले चार साल में केन्द्र अौर राज्यों ने जमकर की कमार्इ
आपको बता दें कि नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच अलग-अलग किश्तों में केन्द्र ने पेट्रोल पर कुल 11.77 रुपए प्रति लीटर आैर डीजल पर कुल 13.47 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ाया है। लेकिन पिछले साल अक्टूबर में इसमें 2 रुपए प्रति लीटर की कटौती भी की थी। इसके पिछले चार साल में पेट्रोलियम पदार्थों से सरकार में कमार्इ में चार गुना इजाफा देखने को मिला है। 2014-15 में केन्द्र सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों से 99,184 करोड़ रुपए की कमार्इ हुर्इ थी वहीं साल 2017-18 में ये बढ़कर 2,29,019 करोड़ रुपए की हुर्इ है। वहीं राज्यों की बात करें तो पेट्रोल-डीजल पर लगने वैट से इनकी कमार्इ साल 2014-15 में 1,37,157 करोड़ रुपए से बढ़कर 2017-18 में ये 1,84,091 करोड़ रुपए हो गया है।