गौरतलब है कि सीजीएसटी एक्ट के सेक्शन 2(17) में ये उल्लेख है कि अगर कोई भी संस्था जो कि धर्म से जुड़ी हो लेकिन अगर वो ऐसे किसी काम का सहारा लें जिसके लिए जहां किसी वस्तु अथवा सेवा के लिए पैसा लिया जाता है तो उसे कारोबार की श्रेणी ने रखा जाएगा। इस पर 18 फीसदी की दर से जीएसटी भी वसूला जाएगा। वहीं दूसरी तरफ संस्था ने टैक्स से छुट्टी पाने के लिए दावा किया कि धार्मिक प्रसार के अपने प्रमुख दायित्व को निभाने में वह धार्मिक ग्रंथ, मैगजीन के साथ लंगर लगाने के काम को करता है, इसी लिए उसे टैक्स से मुक्त रखा जाए।
संस्था की इस दलील पर महाराष्ट्र की जीएसटी कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि शिबिर सत्संग धर्मार्थ संस्था के तौर पर इनकम टैक्स के सेक्शन 12AA के तहत रजिस्टर्ड है। ऐसे में उसे जीएसटी के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता है। बता दें कि जीएसटी एक्ट में महज धार्मिक किताबों का जिक्र किया गया है।
लेकिन धार्मिक किताब का कोई साफ उल्लेख नहीं किया गया। गौरतलब है कि महाराष्ट्र के इस फैसले के बाद यदि कोई धार्मिक संस्था अथवा ट्रस्ट धार्मिक ग्रंथों की बिक्री करती है तो उसे जीएसटी अदा करना होगा। हालांकि एक्ट में जिक्र है कि यदि कोई संस्था ग्रंथ/किताब/मैजगीन को किसी पब्लिक लाइब्रेरी के तहत लोगों के उपयोग के लिए रखती है तो ऐसी स्थिति में उसे जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाएगा। इस फैसले के बाद से अब गीता, क़ुरान और बाइबल जैसे धार्मिक किताबों पर 18 परसेंट जीएसटी टैक्स देना होगा।