चार सालों की अवधि के लिए लागू होता है नियम
पूंजी जरूरतों को लेकर नियमों को बैंकों को उस समय के लिए कैपिटल बफर्स को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है जब क्रेडिट ग्रोथ होती है। इस नियम के तहत क्रेडिट ग्रोथ को मैनेज करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है ताकि बैंकों काे वित्तीय ठेस न पहुंच सके। माैजूदा समय में सामान इक्विटी के रूप में कैपिटल कंजर्वेशन बफर चार सालों की अवधि के लिए सामान तौर पर बांटा जाता है। 1 जनवरी 2016 को इसकी शुरुआत की गर्इ थी जो कि 0.625 फीसदी है।
वित्तीय तरलता संकट को लेकर आरबीआर्इ व सरकार में मतभेद
गौरतलब है कि बीते कुछ समय में बैंकिंग सिस्टम में तरलता संकट को खत्म करने को लेकर रिजर्व बैंक (आरबीआर्इ) व केंद्र सरकार के बीच टकराव भी सामने आया था। वित्त मंत्रालय का मानना है कि बाजार में तरलता की कमी है, खासतौर पर IL&FS संकट के सामने आने के बाद। वहीं दूसरी आेर, केंद्रीय बैंक का मानना है की बाजार में पर्याप्त तरलता है। इस मामला वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता वाली फाइनेंशियल स्टेबिलिटी व डेवलपमेंट काउंसिल के सामने भी रखा गया था। इस बैठक में, वित्त मंत्रालय ने केंद्रीय बैंक से कहा था कि वह नाॅन-बैंक वित्तीय कंपनियों को तरलता की समस्या से जूझने से रोके। यदि एेसा नहीं हाेता है तो इस सेक्टर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। जवाब में आरबीआर्इ अधिकारियों ने कहा था कि बाजार में पर्याप्त क्रेडिट ग्रोथ है आैर उसके पास एेसे काेर्इ अांकड़े नहीं है जिसमें गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) तरलता की समस्या से जूझ रहे हैं।
एनबीएफसी के लिए खुल बन सकता है स्पेशल विंडो
आगामी 14 दिसंबर को भारतीय रिजर्व बैंक की बैठक में एनबीएफसी के लिए एक खास लिक्विडीटी विंडो बनाने पर चर्चा हो सकता है। आरबीआर्इ ने मैराॅथन मीटिंग में यह भी फैसला लिया था कि माइक्रो, स्माॅल व मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमर्इ) को बैंकों द्वारा 25 करोड़ रुपए तक दिए जाने वाले कर्ज को रिकास्ट किया जाए। इस बैठक में दो आैर मामलों को लेकर चर्चा हुर्इ। पहला मामला यह था कि क्या केंद्रीय बैंक के पास जरूरत से अधिक रिजर्व है व दूसरा यह कि केंद्रीय बैंक सभी कमजोर बैंक की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए वह नियमों को थोड़ा ढीला करे।