ये हैं वो पांच आर्थिक कारण जो पीएम मोदी के लिए बन सकते हैं मुसीबत
विपक्ष कुछ एेसे एजेंडों को लेकर साथ लेकर जो आम लोगों की अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुर्इ है।

नर्इ दिल्ली। भले ही पीएम नरेंद्र मोदी विकास के एजेंडे को आगे लेकर चल रहे हों। ताकि 2019 के चुनावों में एक बार फिर से पूर्ण बहुमत की सरकार के साथ सत्ता में लौट सके। लेकिन विपक्ष कुछ एेसे एजेंडों को लेकर साथ लेकर जो आम लोगों की अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुर्इ है। आइए आपको आपको भी बताते हैं कि आखिर वो कौन से पांच आर्थिक कारण हैं तो पीएम मोदी के लिए मुसीबत का सबब बन सकते हैं।
नौकरी का कुछ अता-पता नहीं
पीएम नरेंद्र मोदी जब 2014 के चुनाव प्रचार में जुटे हुए थे तो उन्होंने युवाआें को हर साल 2 दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था। यही वो सबसे बड़ा कारण है जिसे विपक्ष भुनाने में जुटा हुआ है। अगर आैसत भी निकाली जाए ताे देश के युवाआें को दो लाख नौकरियां भी ढंग से नहीं मिली हैं। जिससे देश के युवाआें में इस बात को लेकर खासी नाराजगी भी है। वैसे सरकार मुद्रा योजना में बांटे गए लोन को नौकरी की श्रेणी में रखने का प्रयास कर रही है। लेकिन युवा इस बात से संतुष्ट नहीं दिखार्इ दे रहे हैं।
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें
देश को सबसे ज्यादा मार पेट्रोल आैर डीजल की पड़ रही है। वैसे कुछ दिनों से इंटरनेशनल क्रूड आॅयल के दाम कम हुए हैं। तो पेट्रोलियम कंपनियाें दामों को कम किए हैं। इसके बाद भी लोगों को उम्मीद के मुताबिक राहत नहीं मिली है। ताज्जुब की बात तो ये है कि सरकार अभी तक पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में नहीं ला सकी है। केंद्र सरकार का आरोप है इस मामले में राज्य सरकारें साथ नहीं दे रही है। केंद्र का यह बयान इसलिए खोखला नजर आ रहा है क्योंकि खुद पीएम देश के 21 राज्यों में सरकार होने का दावा कर चुके हैं। एेसे में पेट्रोल को बीजेपी शासित आैर समर्थित राज्यों में लागू करने समस्या क्यों पैदा हो रही है? समझ से परे है।
गन्ना किसानों का भुगतान
बुधवार को गन्ना किसानों को राहत देने के लिए पीएम की कैबिनेट ने 8 हजार करोड़ रुपए पैकेज दिया है। जबकि गन्ना किसान इसे मात्र चुनावी शिगूफा बताने में जुटे हुए हैं। गन्ना किसानों से साफ कर दिया है कि पैकेज कोर्इ परमानेंट हल नहीं है। मौजूदा समय में गन्ना किसानों का करीब 22 हजार करोड़ रुपए का बकाया है। जिसे देने का वादा मोदी सरकार ने किया था। लेकिन वो अभी तक पूरा नहीं हो सका है। जिसका खामियाजा बीजेपी को उपचुनावों में भुगतना पड़ा है।
नोटबंदी के दौरान हुर्इ थी लोगों की मौत
नोटबंदी एक एेसा जख्म है जिसका घाव आज भी हजारों लाखों लोगों के दिलों में ताजा है। क्योंकि कर्इ लोगों की बैंकों की लाइन में जान चली गर्इ थी। कर्इ लोगों को अपने घर की खुशियों को कुर्बान करना पड़ा था। वक्त पर लोगों को रुपया ना मिलने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। कर्इ लोगों के इलाज तक में देरी हो गर्इ थी। जिसे लोग आज भी नहीं भूले हैं। भले ही देश के प्रधानमंत्री नोटबंदी को अपना सफलतम फैसला मानते हों, लेकिन यही फैसला 2019 के चुनावों में गले की फांस बन सकता है।
आज तक पल्ले नहीं पड़ी जीएसटी
जब से देश में जीएसटी लागू की गर्इ थी, तो इस दिन को एक उत्सव की तरह सेलीब्रेट किया था। अब जीएसटी को एक साल पूरे होने वाले हैं। इस एक साल में जीएसटी को समझने वाला अभी तक कोर्इ नहीं है। उसमें लगातार अमेंडमेंट हो रहे हैं। जीएसटी की वजह देश की जीडीपी को काफी नुकसान हुआ है। जिसका आज भी देखने को मिल रहा है। ताजजुब की बात तो ये है कि देश के व्यापारी अभी तक जीएसटी को ठीक से नहीं समझ पाए हैं। जिसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है।
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