नोटबंदी से पहले 95 फीसदी लेनदेन नकदी में होते थे
इस ममाले से जु़ड़े एक जानकार का कहना है कि डिजिटलीकरण ग्राहकों के लिए एक नया अनुभव होगा। लेकिन यह नकदी की जरूरत को पूरी तरह से खत्म नहीं कर सकता। जिनके पास कम पैसा होता है वो डिजिटल प्लेटफाॅर्म के साथ नकदी का भी इस्तेमाल करेंगें। उनके लिए इन दोनों तरह के लेनदेन का अपना अलग महत्व है। नीति निर्माताआें को इस बात का ध्यान रखना होगा कि दुनियाभर की आधी आबादी अभी भी नकदी पर ही निर्भर है। भारत में दो साल पहले हुए नोटबंदी के पूर्व में 95 फीसदी लेनदेन कैश में ही होते थे। नोटबंदी के ठीक बाद लोगों ने डेबिट/क्रेडिट कार्ड, मोबाइल वाॅलेट नेट बैंकिंग के जरिए लेनदेन करना शुरू किया। लेकिन यह 18 महीनों तक ही अपने चरम पर रहा।
कैश-टू-जीडीपी अनुपात में बदलाव
गत मर्इ माह में ही नोमूरा ग्लोबल रिसर्च ने अपनी डिजिटल पेमेंट पर एक रिपोर्ट में कहा था कि कैश-टू-जीडीपी अनुपात नोटबंदी से पहले के स्तर पर ही पहुंच गया है। 27 अप्रैल 2018 तक यह अनुपात 11.3 फीसदी था। नोमूरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी से पहले यह आंकड़ा 11.5-12 फीसदी के स्तर पर था। भारत में कैश-टू-जीडीपी अनुपात कम ही होता है। भारत ही नहीं बल्कि रूस व सिंगापुर में यह अनुपात क्रमशः 8.8 अौर 9.3 फीसदी है।