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हीलियम की खोज करता विक्रम लैंडर
भारत का चंदयान 2 के लैंडर विक्रम का असली काम काफी बड़ा और ऐतिहासिक होता। वो था चांद पर हीलियम-3 की खोज। जानकारों की मानें तो हीलियम 3 कई ऊर्जा जरूरत पूरी कर सकता है। हीलियम 3 की खोज के लिए भारत का चंद्रयान के विक्रम लैंडर को चांद के साउथ पोल के बीच में सॉफ्ट लैंड करना था। लेकिन रास्ते में ही संपर्क टूट गया। अभी तक इसरो विक्रम से संपर्क नहीं साध सका है। इस पर सिर्फ अमरीका, रूस, जापान की नहीं बल्कि चीन की भी नजरें टिकी हुई थी। जानकारों की मानें तो इसी हीलियम के लिए भविष्य में वर्ल्ड वॉर-3 भी हो सकता है।
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चीन पहले ही हीलियम 3 की खोज में है जुटा
चीन पहले से चांद के निचले हिस्से में अपना स्पेसक्राफ्ट लांच कर चुका है। चीन से इसकी लॉन्चिंग 8 दिसंबर को शियांग सैटलाइट लॉन्च सेंटर से की थी। यह लो फ्रिक्वेंसी रेडियो एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेशन की मदद से चांद के पिछले हिस्से की सतह की संरचना और मौजूद खनिजों के बारे में पता लगाएगा। खासकर हीलियम 3 का। चीन के यहां पर पहुंचने के बाद भारत यहां पहुंचने का प्रयास कर रहा है। चंद्रयान 2 के पहुंचने के बाद चीन की मुश्किलें काफी बढ़ जाएंगी।
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क्या है हीलियम 3?
हीलियम 3 सामान्य हीलियम का आइसोटोप है। सामान्य हीलियम में दो प्रोटॉन दो इलेक्ट्रान और दो न्यूट्रॉन होते हैं। वहीं हीलियम 3 में सामान्य हीलियम की तुलना में एक न्यूट्रॉन कम होता है। यानी 2 इलेक्ट्रान, 2 प्रोटॉन और एक न्यूट्रॉन। भूमण्डल में हीलियम 3 लगभग 0.000137 फीसदी की मात्रा में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। अमूमन यह चांद पर ही पाई जाती है। ऐसा माना जाता है की सूर्य की हवाएं जब चन्द्रमा की जमीन से टकराती हैं तो इसमें हीलियम 3 चन्द्रमा की मिट्टी में कैद हो जाती है।
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चांद से पृथ्वी पर हीलियम लाने का खर्च
जानकारों की मानें तो हीलियम-3 गैस के एक टन का उत्पादन और पृथ्वी तक लाने का खर्च तीन अरब डॉलर हो सकता है। चांद से हीलियम-3 लाने के लिए रॉकेट्स, उपग्रहों आदि के विकास में 20 अरब डालर के निवेश का आकलन है। जानकारों के अनुसार चांद पर इतना हीलियम-3 है कि आने वाले दस हजार साल तक पृथ्वी पर ऊर्जा कभी कमी नहीं होगी।
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इतनी है एक टन हीलियम 3 की कीमत
अब अगर किसी देश के पास हीलियम 3 आ जाए तो वो दुनिया का सबसे अमीर देश भी हो सकता है। एक टन हीलियम-3 की कीमत करीब 5 अरब डॉलर के करीब बताई जा रही है। चांद से ढाई लाख टन हीलियम 3 लाई जा सकती है। जिसकी कीमत अनुमान लाखों करोड़ डॉलर है।
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आखिर पृथ्वी पर क्यों नहीं पाई जाती हीलियम?
भूमण्डल में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली हीलियम 3 अधिकतर पृथ्वी में यूरेनियम और थोरियम के अल्फा डीके से सामान्य हीलियम में बदल जाती है। पृथ्वी पर बहुत ही सशक्त चुंबकीय क्षेत्र हैं, जो की सूरज की हवाओं द्वारा हीलियम 3 पृथ्वी पर नहीं आने देती। इसे कृतिम रूप से बनाने के लिए ट्रिटियम हाइड्रोजन का एक रेडियोधर्मी आइसोटोप है और आमतौर पर परमाणु रिएक्टर में न्यूट्रॉन के साथ लिथियम 6 पर बमबारी कर बनाया जाता है। जितनी भी हीलियम 3 बनती है सब लगभग इसी तरीके से बनती है। अगर हम दो हीलियम 3 के परमाणुओं को न्यूक्लियर फ्यूजऩ से सामान्य हीलियम में बदल दें तो इसमें बहुत ऊर्जा पैदा होती है।