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सरकारी बैंको को नुकसान, विलफुल डिफॉल्टर्स के चलते करोड़ो रूपए फंसे

locationनई दिल्लीPublished: Aug 21, 2017 08:52:00 am

Submitted by:

manish ranjan

एसबीआई से लगभग 1,762 विलफुल डिफॉल्टर्स द्वारा लिया गया लोन 31 मार्च तक 25,104 करोड़ रुपए था।

State Bank of  India

नई दिल्ली। विलफुल डिफॉल्टर्स द्वारा सरकारी बैंकों से लिए गए कुल लोन में अकेले एसबीआई की हिस्सेदारी 27 फीसदी से ज्यादा है। एसबीआई से लगभग 1,762 विलफुल डिफॉल्टर्स द्वारा लिया गया लोन 31 मार्च तक 25,104 करोड़ रुपए था। इसके बाद सबसे ज्यादा धनराशि पंजाब नेशनल बैंक की फंसी हुई है। पीएनबी से 1,120 विलफुल डिफॉल्टर्स द्वारा लिए गए लोन का आंकड़ा 12,278 करोड़ रुपए है। इन दोनों बैंकों का कुल मिलाकर 37,382 करोड़ रुपए का लोन बकाया है, जो सभी बैंकों के कुल बकाया लोन का 40 फीसदी है।

वित्त मंत्रालय के आंकडों के मुताबिक, सरकारी बैंकों का विलफुल डिफॉल्टर्स पर कुल बकाया लोन वित्त वर्ष 2016-17 के अंत तक 20.4 फीसदी बढक़र 92,376 करोड़ रुपए हो गया। 2015-16 के अंत तक यह लोन 76,685 करोड़ रुपए था। इस बीच सालाना आधार पर विलफुल डिफॉल्टर्स की संख्या में भी लगभग 10 फीसदी की वृद्धि हुई। मार्च 2017 की समाप्ति के वक्त विलफुल डिफॉल्टर्स की संख्या बढक़र 8,915 हो गई, जो इससे पहले के वित्त वर्ष में 8,167 थी। 5 साल में सबसे ज्यादा लोन एसबीआई का ही डूबा है।

 

 

Punjab National Bank
5 सालों में सबसे ज्यादा डूबी रकम

बैंकों ने विलफुल डिफॉल्ट्स के 8,915 मामलों में से 1,914 मामलों में एफआईआर की गई। जिनमें कुल बकाया 32,484 करोड़ रुपए था। 2016-17 के दौरान 5 सहयोगी बैंकों समेत 27 सरकारी बैंकों ने 81,683 करोड़ रुपए को राइट ऑफ घोषित कर दिया। यह आंकड़ा पिछले 5 वित्त वर्षों का सर्वाधिक था। साथ ही यह राशि
बैड लोन बढक़र 6.41 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया

मार्च 2017 के अंत तक सरकारी बैंकों का ग्रॉस एनपीए बढक़र 6.41 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया, जो एक साल पहले 5.02 लाख करोड़ रुपए था। विलफुल डिफॉल्ट की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कानूनों को कड़ा किया है और यह स्पष्ट किया है कि डिफॉल्टर कंपनी का प्रमोटर, भले ही वह व्होल टाइम डायरेक्टर न हो, अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता।
पहले के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, कोई भी बैंक किसी भी कंपनी के नॉन- व्होल टाइम डायरेक्टर को तब तक विलफुल डिफॉल्टर नहीं बना सकता था, जब तक इस बात का पक्का सबूत न हो कि उसे कंपनी के विलफुल डिफॉल्ट के बारे में पता था और उसने इसका विरोध नहीं किया। इससे पहले के वित्त वर्ष में राइट ऑफ घोषित की गई राशि से 41 फीसदी ज्यादा थी।
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