धरने की अगुआई कर रहे शोध छात्र चक्रपाणि ओझा के मुताबिक, यह विरोध फिरोज खान (Feroze Khan) (बीएचयू के प्रोफेसर) का नहीं, बल्कि धर्म विज्ञान संकाय में एक गैर हिंदू की नियुक्ति का है। अगर यही नियुक्ति विवि के किसी अन्य संकाय में संस्कृत अध्यापक के रूप में होती तो विरोध नहीं होता। यह समझने की जरूरत है कि संस्कृत विद्या कोई भी किसी भी धर्म का व्यक्ति पढ़ और पढ़ा सकता है, लेकिन धर्म विज्ञान की बात जब कोई दूसरे धर्म का व्यक्ति करे तो विश्वसनीयता नहीं रह जाती।
इस बीच, सहायक प्रोफेसर फिरोज खान का कहना है, मेरे पिता रमजान खान ने संस्कृत में शास्त्री की उपाधि ली है। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने संस्कृत का अध्ययन शुरू किया। मैंने दूसरी कक्षा से संस्कृत की शिक्षा लेनी शुरू की। संस्कृत से मैंने जेआरएफ किया, लेकिन कभी भी मुस्लिम होने के नाते कोई परेशानी नहीं हुई। मगर नियुक्ति को लेकर चल रहे आंदोलन से मैं हतोत्साहित हूं। विवि ने नियुक्ति प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बताते हुए सहायक प्रोफेसर पद पर फिरोज खान की नियुक्ति को सही ठहराया है।
कुलपति प्रो. राकेश भटनागर ने कहा, विश्वविद्यालय धर्म, जाति, संप्रदाय, आदि के भेदभाव से ऊपर उठकर राष्ट्र निर्माण के लिए सभी को अध्ययन एवं अध्यापन के समान अवसर उपलब्ध कराने को प्रतिबद्घ है। संस्कृत विभाग के प्रोफेसर राम नारायण दुबे ने कहा, यह बात गलत है कि अध्यापक भी उनके (प्रदर्शनकारी छात्र) साथ हैं। छात्र नियमों का उलंघन कर रहे हैं। कोई भी नियुक्ति यूजीसी के गाइडलाइन के अनुसार ही हुई होगी।
बीएचयू के मुस्लिम प्रोफेसर को मिला एएमयू का समर्थन
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्रोफेसर फिरोज खान की संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान विभाग में नियुक्ति के विरोध में छात्रों के प्रदर्शन के बाद प्रोफेसर को एएमयू से समर्थन मिला है। जहां बीएचयू के छात्र फिरोज के मुस्लिम होने के कारण उनकी नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं, वहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) (एएमयू) (AMU) के छात्र उनके समर्थन में आगे आए हैं। बीएचयू को लिखे एक पत्र में एएमयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सलमान इम्तियाज ने कहा, खान के सार्वजनिक बयान से हमें बहुत दुख हुआ। मुस्लिम होने के कारण विरोध होने पर बीएचयू में उन्हें अपमान महसूस होता है।
उन्होंने कहा, हम उनके और उनकी योग्यता के साथ हैं। अगर उनके साथ कुछ गलत हुआ तो हम शांत नहीं रहेंगे। उनका जीवन, उनकी आजादी और सुरक्षा के बारे में सबसे पहले सोचा जाना चाहिए। उन्हें सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में पढ़ाने का मौका दिया जाना चाहिए। पत्र में आगे लिखा गया है, हम उन छात्रों के असंवेदनशील व्यवहार की निंदा करते हैं, जो मानते हैं कि एक मुस्लिम बीएचयू में संस्कृत पढ़ या पढ़ा नहीं सकता। यह शर्मनाक है। हम आपसे इन छात्रों को भारत की विविधिता, बहुलता, संवैधानिक प्रकृति की शिक्षा देने का आग्रह करते हैं। छात्रसंघ के उपाध्यक्ष हमजा सूफयान ने कहा, प्रोफेसर को यूजीसी के नियमों के अनुसार नियुक्त किया गया था और धर्म के आधार पर उनके साथ भेदभाव उस वातावरण की मानसिकता दिखती है, जो इन छात्रों ने दिखाया है।