वर्ष 2016 में शहीद हुए विद्यार्थी की 35 वर्षीय पत्नी किरण ने कहा, मुझे अपनी बेटियों पर गर्व है, जो पढ़ाई में सचमुच बहुत अच्छा कर रही हैं, मेरी उम्मीद से ज्यादा कर रही हैं। इन्होंने अपने शहीद पिता को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने कहा, ये शिक्षित बनकर, खुद के और दूसरों के जीवन में फर्क लाकर उनके सपने को पूरा करेंगी। शहीद जवान गया के बकनौरी गांव के रहने वाले थे। नायक विद्यार्थी वर्ष 1998 में सेना में भर्ती हुए थे। उरी में बिहार से शहीद हुए तीन जवानों में एक वह भी थे।
किरण देवी को एक बेटा भी है। पति के शहीद हो जाने के बाद वह अकेले ही उसकी परवरिश कर रही हैं। वह स्वीकार करती हैं कि विद्यार्थी की गैरमौजूदगी में ये सब करना उनके लिए सहज और आसान नहीं है। उन्होंने कहा, मेरी बेटियों ने मेरा सिर ऊंचा किया, इन्हें धन्यवाद देती हूं। पति को खो देने के बाद मैं उदास थी। किरण देवी को पटना से लगभग 100 किलोमीटर दूर गया शहर से बाहर स्थित सैन्य शिविर में बना सरकारी आवास मिला है। उन्होंने कहा, मुझमें कोई उम्मीद नहीं बची थी, लेकिन मेरी बेटियां मेरे जीवन में प्रेरणा की नई किरण ले आईं। वह यह कहना नहीं भूलीं कि ये सब एक सामाजिक कार्यकर्ता सर्वेश तिवारी के कारण संभव हो पाया, जो दिल्ली में एक संगठन चलाते हैं।
तिवारी मूल रूप से बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के एक गांव के रहने वाले हैं। वह उरी हमले में जवानों की शहादत से द्रवित हुए और उन्होंने विद्यार्थी की तीनों बेटियों की शिक्षा का खर्च उठाने की घोषणा की। शहीद की विरांगना ने कहा, तिवारी उस समय मदद के लिए आगे आए और उन्होंने अपनी बेटियों को पढ़ाने में मेरी मदद की, जब मैं सबकुछ खोया हुआ महसूस कर रही थी। उन्हें शायद ईश्वर ने मदद के लिए हमारे पास भेजा। आज अगर मेरी बेटियां मेरे और औरों के गर्व करने लायक बनी हैं तो इसका पूरा श्रेय तिवारीजी को जाता है।
तिवारी ने बच्चों की पढ़ाई के लिए किरण को 20 लाख रुपए का चेक सौंपा था। किरण ने कहा, इस रकम में से स्कूल फीस और होम ट्यूशन सहित पढ़ाई पर पूरे खर्च के लिए हम सालाना दो लाख रुपये निकालते हैं। उनकी बड़ी बेटी आरती जब नौवीं कक्षा में थी, तभी 10वीं की तैयारी के लिए गया स्थित आकाश इंस्टीट्यूट की मदद लेने लगी थी। यह तिवारी से मिली आर्थिक मदद के कारण ही संभव हो पाया।