क्या है अडैप्टिव लर्निंग
अडैप्टिव लर्निंग को अडैप्टिव टीचिंग भी कह सकते हैं। इसमें कस्टम लर्निंग की सुविधा दी जाती है। यह व्यक्ति विशेष की जरूरतों को ध्यान में रखकर शिक्षा देने में मदद करती है। यह हर विद्यार्थी के लिए अलग तरह से डिजाइन की जाती है। इसमें बताया जाता है कि किसी खास परिस्थिति में किस तरह से प्रतिक्रिया देनी है। एल्गोरिदम आधारित अडैप्टिव टीचिंग में पहले यह पता किया जाता है कि सीखने वाला पहले से क्या जानता है और उसे अगले चरण में क्या सिखाना सही रहेगा। इसकी सबसे बड़ी बात है कि स्टूडेंट अपनी कमजोरियों को तुरंत दूर कर पाता है।
कैसे काम करती है अडैप्टिव लर्निंग
अडैप्टिव लर्निंग यानी अनुकूल शिक्षा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस-केंद्रित शैक्षिक तकनीक है जो हर छात्र के लिए उसकी दक्षता और प्रदर्शन के आधार पर सीखने की प्रक्रिया को अमल में लाती है। अडैप्टिव लर्निंग को मुख्य तौर पर दो खास हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है- अडैप्टिव एसेसमेंट और अडैप्टिव कंटेंट। अडैप्टिव टेस्ट व्यक्तिगत शिक्षार्थियों के विभिन्न विषयों के ज्ञान को सही तरीके से परखते हैं। शिक्षार्थियों की समझ के मौजूदा स्तर के आकलन से छात्र की सीखने से संबंधित समस्या को समझने और उसे कम करने में मदद मिलती है। फीडबैक के आधार पर मशीन लर्निंग टेक्नोलॉजी किसी बच्चे को लर्निंग के उस रास्ते पर मार्गदर्शन में मददगार हो सकती है, जो उसके लिए अनुकूल हो। यह अडैप्टिव कंटेंट है। बदलते समय में अब स्टूडेंट्स की सोच और जरूरत को इग्नोर नहीं किया जा सकता है।
एजुटेक सॉल्यूशन कर रहे हैं काम
भारत में अडैप्टिव लर्निंग के माध्यम से न सिर्फ युवा, बल्कि हर आयु वर्ग के लोग शिक्षा पा सकते हैं। बाजार में अडैप्टिव ई-टेक्स्ट बुक्स भी मौजूद हैं। इन्हें स्टूडेंट्स की खास जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। इसमें बिग डाटा को भी काम में लिया जाता है। स्टूडेंट्स की डीप नॉलेज के आधार पर उनके अनुसार कोर्स डिजाइन कर सकते हैं। इसके साथ ही स्टूडेंट्स के लिए मोबाइल आधारित लर्निंग, वीडियो आधारित लर्निंग, सीखने के लिए वर्चुअल रियलिटी और ऑग्र्युमेंटेड रियलिटी पर फोकस किया जा रहा है। देश में कई एजुटेक सॉल्यूशन्स शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार कर रहे हैं। टेक्नोलॉजी से एजुकेशन को मजेदार बनाया जा रहा है।
फीडबैक पर फोकस
अडैप्टिव लर्निंग में सबसे ज्यादा फीडबैक पर फोकस किया जाता है। किसी भी एजुटेक सॉल्यूशन के बारे में स्टूडेंट क्या फीडबैक दे रहे हैं, इस पर गौर करना आवश्यक है। इसमें इंटर-क्लास स्टूडेंट्स का कोलाबोरेशन करके उन्हें डिस्कशन का फोरम दिया जाता है। अडैप्टिव लर्निंग के लिए क्लासरूम्स का रंग-रूप भी बदला जाता है। इसमें खास तौर पर स्किल्स सीखने पर जोर रहता है।
सस्ती और सुलभ पहुंच
अनुभवी शिक्षकों, उपयुक्त छात्र-शिक्षक अनुपात और वित्तीय संसाधनों के अभाव में पर्सनलाइज्ड लर्निंग पर अमल करना मुश्किल है। हालांकिअडैप्टिव लर्निंग का खर्च हर छात्र के लिए हर महीने 100 रुपए से 150 रुपए के करीब होता है। हाल के वर्षों में इंटरनेट और डिजिटल सिस्टम के बढ़ते इस्तेमाल ने डिजिटल शिक्षा तक लोगों की आसान पहुंच बढ़ाई है, जिससे देश के दूर-दराज इलाकों में भी अडैप्टिव लर्निंग का लाभ पहुंच रहा है। लोगों में पर्सनलाइज्ड एजुकेशन को लेकर जागरुकता आ रही है।