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कूड़ा बीनने वाले बच्चों को मिली कलम की ताकत, गाजीपुर बॉर्डर पर खोली गई पाठशाला

locationनई दिल्लीPublished: Mar 31, 2021 05:25:15 pm

Submitted by:

Pratibha Tripathi

सावित्री बाई फुले नाम से खुली पाठशाला दे रही है गरीब बच्चों को शिक्षा, ये बच्चे सुबह से निकल जाते थे कूड़े को बटोरने की तलाश में..

school opened on Ghazipur border

school opened on Ghazipur border

नई दिल्ली। गाजीपुर बॉर्डर जो हमेशा कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ रहे किसानों की आवाज से गूंजा करता था आज इसी इलाके में किसान प्रदर्शन के बीच कूड़ा बीनने वाले बच्चों की जिंदगी में एक अच्छी शुरूआत देखने को मिल रही है। यहां पर आदोंलन में आए बच्चों के लिए एक पाठशाला खोली गई है। जो बच्चों की जिंदगी को संवारने की कोशिश कर रही है कूढ़ा बीनने वाले बच्चों को इस तरह से शिक्षा दी जा रही है कि वे लोग हर छोटी-छोटी बात पर ‘थैंक्यू’ और सॉरी बोलते नजर आ रहे हैं, अब बच्चों के व्यवहार को देख वहां पर रहने वाले लोग भी इसी पाठशाला में अपने बच्चों का दाखिला कराने के लिए पहुंच रहे हैं। गाजीपुर बॉर्डर पर खोली गई पाठशाला गरीब बच्चों को नई राह दिखाने की एक बड़ी मुहीम है। जिससे ये बच्चे पढ़-लिखकर कुछ अच्छा काम कर सकें।

सावित्री बाई फुले नाम से चल रही पाठशाला में करीब 150 बच्चे पढ़ाई करने आ रहे हैं। बच्चों के बढ़ते उत्साह को देख अब शिक्षकों ने भी अपनी पूरी मेहनत के साथ इन्हें शिक्षा देना भी शुरू कर दिया है इतना ही नही इन गरीब बच्चों को यूनिफॉर्म देने के साथ किताबें और बैग भी मुहैया कराया जा रहा है।

पहले बच्चे घर के गंदे कपड़े पहन कर इस पाठशाला में चले आया करते थे, लेकिन अब जबसे इन्हें यूनिफॉर्म दी गई है तब से ये बच्चे एक नए जोश के साथ इस पाठशाला में आते है और पढ़ाई के बाद घर पर यूनीफार्म उतारकर घर के कपड़े पहनकर फिर अपने काम में जुट जाते हैं।

गाजीपुर बॉर्डर के पास बनी बस्तियों के ये बच्चे पहले कूड़ा बीनकर प्लास्टिक की बोतलें को इकट्ठा किया करते थे लेकिन जब से ये पाठशाला आने लगे है तब से ये बच्चे यहीं पर रहकर खाना भी खा रहे है और प्रारंभिक शिक्षा भी प्राप्त कर रहे हैं, जिसका असर अब बच्चों पर दिखने लगा है। पाठशाला आने के बाद बच्चों के व्यवहार में इतना परिवर्तन आया है कि ये लोग हर बात पर थैंक्यू और गलती होने पर ‘सॉरी’ बोलना, साफ-सुथरे बनकर पाठशाला में आना और पाठशाला में शिक्षकों द्वारा सिखाई गई जानकारी को याद कर अगले दिन सुनाना इनकी दिनचर्या बन चुकी हैं।

इतना ही नहीं, इन बच्चों को पढ़ाई में इतना उत्साह देखने को मिल रहा है कि अब इन्हें 1 से लेकर 10 तक के पहाड़े तक याद हो चुके हैं। साथ ही जिन बच्चों को किताब देखना भी नही आता था आज वो पढ़ भी रहे है और लिखकर बता भी रहे है। यह पाठशाला आंदोलन में शामिल एक सामाजिक कार्यकर्ता महिला ने खोली है।

समाजिक कार्यकर्ता निर्देश सिंह ने बताया है, “बच्चों को जब इस पाठशाला की तरफ से यूनिफॉर्म, बैग, स्टेशनरी के सामान हमारी तरफ से मुहैया कराए जाने लगे तब से यहां पर बच्चों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी होने लगी है। अब बच्चे बिना फीस के पढ़ाई कर रहे हैं। इन बच्चों के अंदर बदल रहे परिवर्तन को देखकर लोग अपने बच्चों का एडमिशन कराने यहां आ रहे हैं।”

लेकिन जब तक किसानों का आदोलन चल रहा है तब तक बच्चे सुरक्षित है इसके बाद बच्चे को भविष्य कैसे सवंरेगा? इस सवाल के जवाब में निर्देश सिंह ने बताया हैं, “इस परिस्थिति से निपटने के लिए स्थानीय स्कूलों में हमारी एक टीम तैयार की गई है। जो बच्चों का एडमिशन स्थानीय सरकारी स्कूलों में कराएंगे।” अभी इस पाठशाला में दो शिफ्ट में क्लास चलती हैं। सुबह 11 से 12 बजे तक इसमें व्यावहारिक और अक्षरों का ज्ञान दिया जाता है। शाम को सुचारु रूप से क्लास चलती है।

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