केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार ने कम से कम 20 हजार की आदिवासी आबादी वाले प्रखंड और 50 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले प्रखंड में कम से कम एकलव्य विद्यालय खोलने की योजना को मंजूरी दी है। अब इन विद्यालयों में सामान्य वर्ग के बच्चों को भी प्रवेश किया जाएगा। इसके लिए दस प्रतिशत स्थान सामान्य वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित होंगे। ये स्थान इन विद्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों, वाम उग्रवाद में अपने माता पिता खोने वाले बच्चों, विधवा के बच्चों और दिव्यांग माता पिता के बच्चों के लिए आरक्षित होंगे। एकलव्य आदर्श विद्यालय आदिवासी बहुल इलाकों में बनायें जा रहे हैं और इनमें आदिवासी बच्चों को कक्षा छह से 12 कक्षा तक शिक्षा दी जाती है। ये विद्यालय आवासीय और सामान्य होते है। इन विद्यालयों के पढऩे वाले बच्चों का पूरा व्यय सरकार वहन करती है। फिलहाल 284 विद्यालयों को मंजूरी दी गयी है और इनमें से 219 बन चुके हैं। इसके अलावा सरकार ने वर्ष 2012-22 तक और 462 एकलव्य विद्यालय बनाने की योजना को मंजूरी दी है।
ओराम ने कहा कि 462 एकलव्य विद्यालय बनाने के लिए वित्त वर्ष 2018-19 और वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान 2242.03 करोड़ रुपए की वित्तीय लागत को मंजूरी दी है। उन्होंने कहा कि एकलव्य विद्यालयों के संचालन के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत स्वायत्त संस्था का गठन किया जाएगा। इसका गठन नवोदय विद्यालय समिति की तर्ज पर होगा। नई योजना में निर्माण की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा छात्रों को बेहतर सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एकलव्य विद्यालय की निर्माण लागत को मौजूदा 12 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इसके अलावा वित्त वर्ष 2019-20 से छात्रों पर बार-बार होने वाले खर्च की राशि मौजूदा 61,500 रुपए प्रति छात्र से बढ़ाकर 1,09,000 रुपए की जाएगी।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर, पर्वतीय क्षेत्रों, दुर्गम क्षेत्रों तथा वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में निर्माण के लिए 20 प्रतिशत अतिरिक्त राशि उपलब्ध कराई जाएगी। जनजातीय बहुल 163 जिलों में प्रति पांच करोड़ रुपए इकाई लागत वाली खेल सुविधाओं की स्थापना की जाएगी और इनका निर्माण 2022 तक कर लिया जाएगा। एकलव्य विद्यालय के रखरखाव के लिए आर्थिक सहायता प्रति पांच वर्ष 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 20 लाख रुपए कर दी गई है।