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इस तरह टूट रहे महात्मा गांधी, कस्तूरबा के सपने

locationजयपुरPublished: Jan 20, 2019 01:20:56 pm

महात्मा गांधी के जन्म के 150वें साल को लेकर केंद्र और राज्य सरकार सहित विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई समारोह आयोजित कर उन्हें याद किया जा रहा है और उनके बताए गए रास्ते पर चलने के संकल्प लिए जा रहे हैं।

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Kasturba Gandhi School

महात्मा गांधी के जन्म के 150वें साल को लेकर केंद्र और राज्य सरकार सहित विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई समारोह आयोजित कर उन्हें याद किया जा रहा है और उनके बताए गए रास्ते पर चलने के संकल्प लिए जा रहे हैं। गांधी और कस्तूरबा के सपने मगर यहां टूट रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी विभिन्न मंचों से बिहार सरकार के गांधी के बताए मार्गों पर चलने की बात कहते रहे हैं, लेकिन पश्चिम चंपारण जिले के ‘भीतिहरवा गांधी आश्रम’ के आस-पास के ग्रामीणों द्वारा गांधी और कस्तूरबा के सपने को साकार करने की कोशिश की जा रही है।

ये लोग एक स्कूल को मान्यता नहीं मिलने से परेशान हैं। अब इस स्कूल की छात्राओं ने मुख्यमंत्री को खुला पत्र लिखकर आंदोलन करने की घोषणा कर दी है। जाने-माने गांधीवादी एस एन सुब्बाराव कहते हैं कि 27 अप्रैल, 1917 को महात्मा गांधी मोतिहारी से नरकटियागंज आए थे और फिर पैदल ही शिकारपुर और मुरलीभहरवा होकर भीतिहरवा गांव पहुंचे थे। उस दौरान कस्तूरबा ने महिला शिक्षण के काम को गांधी जी के चंपारण से चले जाने के बाद छह महीने तक जारी रखा था। कस्तूरबा के प्रयत्नों को देखकर ग्रामीण इतने प्रभावित हुए कि उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए उनके द्वारा शुरू की गई परंपरा को आज तक मिटने नहीं दिया। आज भी उस परंपरा को समृद्ध करने में यहां के लोग जुटे हुए हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि पश्चिम चंपारण जिला मुख्यालय बेतिया से करीब 25 किलोमीटर दूर भीतिहरवा स्थित गांधी आश्रम के आस-पास के दर्जनों गावों की लड़कियों की शिक्षा के लिए कोई स्कूल नहीं था। ग्रामीण किसानों की आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं है कि वे अपनी बेटियों को पढऩे के लिए बेतिया या नरकटियागंज भेज सकें।

उनकी इस विवशता को महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने सौ साल पहले जानकर लड़कियों के लिए शिक्षण का काम शुरू कर दिया था। स्थानीय ग्रामीणों कस्तूरबा गांधी की स्मृति में एक स्कूल की स्थापना के लिए अपनी जमीन सरकार को दान दी। स्थानीय लोगों की जमीन पर कस्तूरबा की स्मृति में कन्या विद्यालय बना भी दिया गया।

कस्तूरबा कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय के सचिव दिनेश प्रसाद यादव बताते हैं कि ग्रामीणों के जमीन देने के बावजूद स्कूल के भवन आदि के लिए कहीं से जब कोई राशि नहीं मिली, तब ग्रामीणों ने अपने सहयोग से स्कूल भवनों का निर्माण शुरू करा दिया। वे बताते हैं कि दीपेंद्र बाजपेयी के नेतृत्व में स्थानीय पढ़े-लिखे युवक स्कूल में नि:शुल्क अध्यापन शुरू कर दिया। इसके बाद स्कूल संचालन के लिए एक समिति बनाई गई।

दिनेश बताते हैं, आज ग्रामीण अपने पूर्वजों के सपनों को पंख दे दिए हैं। आज स्कूल में न केवल लड़कियां पढ़ रही हैं, बल्कि उनकी संख्या में लगातार इजाफा भी हो रहा है। वे कहते हैं कि इन लड़कियों को शिक्षा तो दे दी जाती है, मगर उन्हें सुविधा नहीं दे पाते। इन छात्राओं के साथ सबसे बड़ी समस्या इनके परीक्षा फॉर्म भरने की है। स्कूल की मान्यता नहीं है, जिस कारण यहां की छात्राओं को परीक्षा फॉर्म भरने में परेशानी होती है।

गांधी की ‘कर्मभूमि’ भितिहरवा की बेटियां अपने तीन सूत्री मांगों को लेकर अब आंदोलन करने के मूड में है। कस्तूरबा कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय (+2) की छात्राओं ने मुख्यमंत्री को एक खुला पत्र लिखकर स्कूल की अविलंब मान्यता दिलवाने की मांग की है। छात्राओं ने पोशाक, छात्रवृत्ति, साइकिल सहित अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है।

स्कूल में कार्यरत बाल संसद की प्रधानमंत्री कौशकी कुमारी ने बताया, हमारे विद्यालय में 400 लड़कियां नि:शुल्क पढ़ाई कर रही है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने के बावजूद सरकार के तरफ से आज तक विद्यालय को कोई सहयोग नहीं मिला है। इस कारण लड़कियां अभाव में बीच में ही पढ़ाई छोड़ रही है। बालिकाओं की उच्च शिक्षा के लिए पूरे प्रखंड में यही एक शिक्षण संस्थान है। सरकार की उदासीनता के कारण आज हम छात्राएं मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।

बाल संसद की एक छात्रा कहती हैं कि 20 नवंबर, 2017 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विद्यालय को मान्यता दिलाने का आश्वासन दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री शायद अपना वादा भूल गए हैं। उन्हें याद दिलाने के लिए 30 जनवरी को गांधी आश्रम के मुख्यद्वार पर एक दिवसीय अनशन कर सांकेतिक विरोध किया जाएगा। छात्राओं ने कहा, अगर उनकी मांगों को सरकार ने नहीं माना तो 2 अक्टूबर से हम सभी छात्राएं अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगी। इस स्कूल में आने वाले सभी लोग स्कूल की प्रशंसा करते नहीं थकते। लोग कहते हैं कि स्थानीय लोगों ने अपने परिश्रम से गांधी के सपने को पूरा करने के लिए कोशिश तो की ही, मगर रूठी है सरकार ही।

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