उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली में एक बच्चे को जिज्ञासु, रचनात्मक, देखभाल, संचार, आत्मविश्वास और सक्षम बनाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि इस प्रणाली में प्रत्येक बच्चे को एक सक्रिय, देखभाल करने वाला नागरिक तैयार करना चाहिए जो आज की दुनिया में भाग लेने के लिए तैयार हो और कल की दुनिया को आकार देने में सक्षम हो।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा माहौल बच्चों में आत्मविश्वास के अलावा उनमें सहिष्णुता और निर्वाह की भावना पैदा करेगा। उन्होंने स्टुडेंट्स से केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं रहने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, अध्ययन महत्वपूर्ण हैं लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण खेल, ललित कला, नृत्य, संगीत, कला और संस्कृति भी हैं। वास्तव में, मैं इस बात की वकालत करता हूं कि स्टुडेंट्स को अपने स्कूली शिक्षा के 50 फीसदी घंटे कक्षाओं के बाहर बिताने चाहिए और खेल शिक्षा को शिक्षाविदों और अभिभावकों द्वारा अधिक महत्व देना चाहिए।