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ISRO दे रहा है स्टूडेंट्स को ये खास मौका, आप भी हो जाएं तैयार

locationजयपुरPublished: Jan 18, 2019 06:52:10 pm

सभी 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से तीन-तीन छात्रों का चयन कर उन्हें एक महीने के लिए ISRO की प्रयोगशालाओं में काम करने का मौका दिया जायेगा।

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अंतरिक्ष क्षेत्र में छात्रों की रुचि पैदा करने और देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम में उन्हें शामिल करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने छात्रों के लिए अपने दरवाजे खोलने के साथ ही देश भर में 12 अनुसंधान एवं इन्क्यूबेशन केंद्र खोलने की घोषणा की है। इसरो के अध्यक्ष के. शिवन ने बताया कि सभी 36 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से तीन-तीन छात्रों का चयन कर उन्हें एक महीने के लिए एजेंसी की प्रयोगशालाओं में काम करने का मौका दिया जायेगा। उनके आने-जाने, ठहरने, खाने का सारा खर्च इसरो वहन करेगा।

उन्होंने बताया कि इन छात्रों को वहाँ उपग्रह बनाने का मौका मिलेगा और यदि उपग्रह अच्छे हुये तो इसरो उन्हें अंतरिक्ष में भी भेजेगा। यह अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के एक कार्यक्रम जैसा ही होगा। इसके लिए राज्य सरकारों से बात चल रही है। इसरो प्रमुख ने बताया कि देश के छह हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, पूर्वोत्तर और मध्य में एक-एक इन्क्यूबेशन केंद्र तथा एक-एक अनुसंधान केंद्र खोलने की भी योजना है। इससे इसरो का विस्तार पूरे देश में हो सकेगा।

उन्होंने बताया कि एनआईटी त्रिपुरा और एनआईटी जालंधर में इन्क्यूबेशन केंद्र खोले जा चुके हैं। अन्य इन्क्यूबेशन केंद्र तिरुचि, नागपुर, इंदौर और राउरकेला में शुरू किये जायेंगे। छह इसरो अनुसंधान केंद्र जयपुर, गुवाहाटी, पटना, कन्याकुमारी, आईआईटी वाराणसी और एनआईटी कुरुक्षेत्र में खोलने की योजना है।

छात्रों ने बनाया सबसे छोटा उपग्रह, 24 जनवरी को इसरो करेगा प्रक्षेपण
इसरो 24 जनवरी को दुनिया के सबसे छोटे उपग्रह कलामसैट का प्रक्षेपण करेगा जिसे भारतीय छात्रों के एक समूह ने तैयार किया है। इसरो के अध्यक्ष डॉ. के. शिवन ने बताया कि कलामसैट वी-2 का प्रक्षेपण 24 जनवरी को आँध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी-सी44 मिशन के तहत किया जायेगा। यह दुनिया का सबसे छोटा उपग्रह है। इसे चेन्नई के छात्रों के समूह स्पेस किड्स ने तैयार किया है।

उन्होंने बताया कि पीएसएलवी-सी44 मिशन में इसके अलावा माइक्रोसैट-आर उपग्रह का भी प्रक्षेपण किया जायेगा। यह पीएसएलवी के नए संस्करण पीएसएलवी-डीएल का पहला प्रक्षेपण भी होगा। कलामसैट का नामकरण पूर्व राष्ट्रपति तथा मिसाइलमैन के नाम से विख्यात वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर किया गया है।

डॉ. शिवन ने बताया कि इसरो ने हर उपग्रह प्रक्षेपण मिशन में पीएस-4 प्लेटफॉर्म को छात्रों के बनाये उपग्रह के लिए इस्तेमाल करने का फैसला किया है। कलामसैट पीएस-4 प्लेटफॉर्म पर अंतरिक्ष में स्थापित पहला उपग्रह होगा। यह इतना छोटा है कि ‘फेम्टो’ श्रेणी में आता है। पीएस-4 प्रक्षेपण यान का वह हिस्सा है जिसमें चौथे चरण का प्रणोदक भरा जाता है और यह उपग्रह को उसकी कक्षा में स्थापित होने के बाद अंतरिक्ष में कबाड़ के रूप में रह जाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसमें ऊर्जा स्रोत के रूप में एक सौर पैनल लगाकर इसे छह महीने से साल भर तक सक्रिय रखा जा सकता है। हम छात्रों से पूरा उपग्रह बनाने की जगह सिर्फ पे-लोड बनाकर लाने की बात कह रहे हैं। हम उनके पे-लाड को सीधे पीएस-4 में फिट कर उसे अंतरिक्ष में भेज देंगे।’’ इसरो प्रमुख ने बताया कि अब तक इस योजना के तहत सात आवेदन आये हैं। उन्होंने बताया कि एक मिशन में सौ से भी ज्यादा छोटे उपग्रह भेजे जा सकते हैं। इसलिए इसरो चाहता है कि अधिक से अधिक छात्र उपग्रह बनाकर लायें। हम सभी उपग्रह को प्रक्षेपित करने के लिए तैयार हैं।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में कुल 32 मिशनों को अंजाम दिया जायेगा। इनमें 14 प्रक्षेपण मिशन, 17 उपग्रह मिशन और एक डेमोमिशन होगा। कुछ महत्वपूर्ण मिशन, चंद्रयान-2, जी-सैट 20, चार-पाँच माइक्रो रिमोट सेंङ्क्षसग उपग्रह, छोटे प्रक्षेपणयान एसएसएलवी का पहला प्रक्षेपण और पुनरोपयोगी प्रक्षेपणयान की डेमो लैंडिंग का परीक्षण शामिल हैं।

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