सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसले में जिन बौद्धिक संदर्भों का हवाला दिया गया, उनमें जेजीयू के जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल (जेजीएलएस) के चार प्रोफेसर दीपिका जैन, जॉन सेबेस्टियन, दानिश शेख और सप्तऋषि मंडल शामिल हैं। इन संदर्भों ने सुप्रीम कोर्ट को इस ऐतिहासिक निर्णय के महत्वपूर्ण बिंदुओं में मदद की, जिसने संवैधानिकता, समानता, गैर-भेदभाव और न्याय की मूल्यों को बढ़ाया है।
जेजीएलएस एसोसिएट प्रोफेसर जैन ने विश्वविद्यालय की तरफ से जारी बयान में कहा, यह एक महत्वपूर्ण जीत है, न केवल एलजीबीटीआईक्यू समुदाय के लिए बल्कि उन कार्यकर्ताओं की पीढ़ी के लिए भी जिन्होंने 25 वर्षों तक अदालतों में इस कानूनी लड़ाई को लड़ा। जैन ने कहा, यह दूसरे देशों को भी उनके मामलों में अनुसरण करने और वंचित समुदायों की सुरक्षा के प्रति प्रेरित करेगा। सभी प्रगतिशील कानूनी आदेश की तरह, यह भी समतावादी समाज की दिशा में केवल शुरुआत भर है।
न्यायालय ने जैन का हवाला स्वास्थ्य पर संवैधानिक अधिकार की मान्यता के संदर्भ में दिया जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकार का हिस्सा है। अदालत ने आईपीसी में 2013 में किए गए संशोधन के परिप्रेक्ष्य में धारा 377 की निरर्थकता को बताने वाले फैसले में सेबेस्टियन द्वारा लिखित लेख का संदर्भ दिया, जबकि निजता के अधिकार पर दिए गए फैसले में प्रोफेसर शेख व मंडल द्वारा लिखित लेखों का हवाला दिया।
यह समझाने के लिए कि कैसे एलजीबीटीआईक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स एंड क्वेशचनिंग) लोग न्याय से वंचित हैं, अदालत ने इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट के सलाहकार रहते शेख द्वारा सह-लिखित रिपोर्ट का उल्लेख किया। मामले में जेजीयू की भूमिका केवल उद्धरण के स्तर तक ही सीमित नहीं है। जैन ने ट्रांसजेंडर कार्यकर्ताओं के लिए कई कानूनी जागरूकता कार्यशालाओं की भी अगुवाई की जिसके अंतर्गत सामाजिक न्याय संघर्षों के स्तर पर महत्वपूर्ण अधिकार प्रशिक्षण मुहैया कराए गए।
जैन ने जेजीएलएस के अन्य फैकल्टी सदस्यों के साथ सर्वोच्च न्यायालय में सुरेश कौशल मामले में आवेदन दाखिल किया और ये आईपीसी की धारा 377 को चुनौती देने वाली मामले की टीम का हिस्सा थे। शेख भी मुकदमे की टीम का हिस्सा थे और उन्होंने सुरेश कौशल मामले की सुनवाई पर आधारित नाटक ‘कंटेम्प्ट’ की संकल्पना तैयार की थी। शेख ने कहा, यह निर्णय परिवर्तनीय क्षमताओं के वादों से जुड़ा हुआ है। यह अब हम पर है कि एक कार्यकर्ता, वकील, बुद्धिजीवी, सिविल सोसायटी के सदस्य होने के नाते इस कानून की भावना को हम अपने दैनिक जीवन में उतारें।