मार्गा फॉलस्टिच स्कॉट एजी में पहली महिला कार्यकारी थीं। स्कॉट एजी एक अंतरराष्ट्रीय विनिर्माण समूह था जिसमें ग्लास और ग्लास-मिट्टी उत्पाद बनाएं जाते थे। वे इस संस्था के साथ 44 सालों तक जुड़ी रहीं। इस संगठन से जुड़े रहने के दौरान उन्होंने 300 तरह के ऑप्टिकल ग्लास पर काम किया। 1922 में उनका परिवार जेना आ गया। यहां पर मार्गा ने हाई स्कूल की पढ़ाई की। 1935 में उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया।
1 फरवरी 1998 को 82 साल की उम्र में उनका निधन हुआ। मार्गा के नाम से 40 पेटेंट रजिस्टर्ड है। उनके बनाये गये ग्लास से माइक्रोस्कोप के विकास में मदद मिली। मार्गा के बनाये गये S4-64 लेंस के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई और सम्मानित भी किया गया। मार्गा फॉलस्टिच को सोशल मीडिया भी याद कर रहा है और ग्लास साइंस में उनके योगदान को याद कर रहा है। मार्गा फॉलस्टिच ट्विटर में ट्रेंड कर रहा है। एक यूजर ने उन्हें पहली महिला ऑप्टिशियन बताया है।
स्कॉट एजी ऑप्टिकल लेंस और स्पेशल ग्लास बनाने वाली दुनिया की बड़ी कंपनी थी। कंपनी में अपने शुरूआती सालों में मार्गा ने पतले फिल्म्स बनाने पर काम किया। मार्गा फॉलस्टीच द्वारा पतले फिल्म्स पर किये गये रिसर्च का इस्तेमाल आज भी सन ग्लासेज, एंटी रिफलेक्टिव लेंस और ग्लास फेस बनाने में किया जाता है। ग्रेजुएट असिस्टेंट से करियर की शुरुआत करने वाली फॉलस्टिच पहले टेकनिशियन बनीं, इसके बाद वे साइंटिफिक असिस्टेंट बनीं, आखिरकार उन्हें अपना मुकाम मिला और वे कंपनी में वैज्ञानिक बन गईं।
पहले विश्व युद्ध की विभीषका में पली-बढ़ी मार्गा फॉलस्टिच पर दूसरे विश्व युद्ध का कहर टूटा। इस लड़ाई में उनके मंगेतर की मौत हो गई। इस घटना के बाद वे टूट गईं, कुछ दिनों तक वह अकेले रहीं इसके बाद उन्होंने अपनी निजी जिंदगी की इस घटना का असर अपने पेशेवर जिंदगी पर नहीं पड़ने दिया। उनका पूरा फोकस विज्ञान की सेवा और अपने करियर पर रहा। 1942 में अपना काम जारी रखते हुए उन्हें रसायन शास्त्र की पढ़ाई की। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध की वजह से उनकी पढ़ाई में बाधा आई। इसके बाद मार्गा फॉलस्टिच समेत स्कॉट एजी के 41 स्पेशलिस्ट और मैनेजर को वेस्टर्न सेक्टर में लाया गया।
इस कंपनी में 44 सालों तक काम करने के बाद वह 1979 में रिटायर हुईं। रिटायरमेंट के बाद मार्गा फॉलस्टिच दुनिया भर में यात्राएं की और वे ग्लास कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेती रहीं। उन्होंने इन कॉन्फ्रेंस में विज्ञान बिरादरी को अपने रिसर्च से अवगत कराया।