दिल्ली विश्वविद्यालय की लॉ फैकल्टी से स्नातक एक छात्र ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, ”मैंने यह सोचकर प्रवेश परीक्षा में आवेदन नहीं किया कि शीर्ष 40 में नाम आना काफी मुश्किल रहेगा। अगर उन्होंने सीटों में वृद्धि की घोषणा की है तो मैं जरूर आवेदन करूंगा, क्योंकि एनएलयू-डी मेरी पहली पसंद होगी। आईपी विश्वविद्यालय और जिंदल स्कूल ऑफ लॉ बहुत महंगे हैं। अन्य कानून स्नातकों ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा प्रवेश परीक्षा के बाद सीटों की संख्या बढ़ाना अनुचित है। इस कदम के पीछे की मंशा जानने के लिए आईएएनएस ने जब विश्वविद्यालय से संपर्क किया तो कहा गया कि यह कदम समाज को कानूनी शिक्षा में व्यापक पहुंच प्रदान करने के लिए उठाया गया है और यह निर्णय प्रवेश घोषणा के अनुरूप था, जिसमें कहा गया था कि सीटों की संख्या में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है।
एनएलयू-डी के रजिस्ट्रार जी.एस. बाजपेयी ने कहा कि ऐसा कहा जा सकता है कि सीटों में वृद्धि विश्वविद्यालय के हिस्से पर बिल्कुल अनुचित नहीं है। बल्कि यह कानून के अध्ययन को प्रोत्साहित करने का एक कदम है, ताकि इस क्षेत्र में अधिक शिक्षक और शोधकर्ता उपलब्ध हों। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा की गई कार्रवाई को अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद द्वारा भी मंजूरी मिल गई थी। हालांकि, वह इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि एनएलयू-डी पिछले दो सालों में पूरी सीटों को भरने में क्यों विफल रहा, जिसका खुलासा आरटीआई के एक सवाल में हुआ है। आरटीआई के इस सवाल के जवाब में कहा गया है कि एनएलयू-डी ने वर्ष 2016 में 50 सीटों की तुलना में 40 छात्रों को दाखिला दिया था, जबकि 2017 में 40 सीटों में से केवल 23 ही भर सकी थीं।