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दिल्ली यूनिवर्सिटी को ESMA के तहत लाने की कोई योजना नहीं : HRD अधिकारी

locationजयपुरPublished: Oct 20, 2018 04:57:22 pm

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) को अतिआवश्यक अनुरक्षण अधिनियम (एस्मा) के तहत लाया जाएगा।

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केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) को अतिआवश्यक अनुरक्षण अधिनियम (एस्मा) के तहत लाया जाएगा। एचआरडी का जवाब ऐसे समय आया है जब डीयू के कुछ शिक्षकों ने आरोप लगाया था कि मंत्रालय ने दिल्ली यूनिवर्सिटी अधिनियम के अध्ययन के लिए एक कार्यकारी समूह का गठन किया है ताकि उसे (डीयू) को एस्मा अधिनियम के तहत लाया जा सके। शिक्षकों का यह भी कहना था कि ऐसा करना उनके लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमलाहै।

उच्च शिक्षा के सचिव आर सुब्रह्मणयम ने स्पष्ट करते हुए बताया कि परीक्षा सेवा में हड़ताल पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव डुटा की हड़ताल से प्रभावित स्टुडेंट्स की ओर से आया था। उन्होंने आगे बताया कि सुझाव का अध्ययन करने के बाद मंत्रालय ने एस्मा को लागू नहीं करने का फैसला लिया है।

उच्च शिक्षा सचिव ने ट्वीट कर कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी को एस्मा अधिनियम के तहत लाने का कोई सुझाव नहीं है। डुटा की हड़ताल से प्रभावित कुछ स्टुडेंट्स ने ऐसा करने का सुझाव दिया था। हालांकि, मंत्रालय ऐसा कोई कदम नहीं उठाने जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि उच्च शिक्षा नियामक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 12 सितंबर, 2018 को एक आदेश जारी कर आज के समय में परीक्षा/शिक्षण/सीखना/मूल्यांकन को एस्मा अधिनियम के तहत लाने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी अधिनियम के अध्ययन के लिए कार्यकारी समूह के गठन करने का आदेश जारी किया था।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से जारी उक्त सर्कुलर का जवाद देते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (डुटा) ने जवाद देते हुए कहा कि सर्कुलर के जरिए ऐसे ‘संभावित परिर्वतनों’ की खोज की जा रही है जिसके तहत डीयू की संस्थागत स्वायत्ता को भंग उसके (डीयू) अकादमिक समुदाय के लोकतांत्रिक अधिकारों को निलंबित किया जा सके।

डुटा ने आगे कहा कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों को इस अधिनियम के तहत लाना एक कठोर और मूर्खतापूर्ण कदम है क्योंकि शिक्षक केवल सेवा प्रदाता नहीं हैं। वे ज्ञान के निर्माता और प्रसारक हैं। एस्मा और सीसीएस के जरिए शिक्षकों के लोकतांत्रिक को दबाना सरकार की निराशा और घबराहट को दर्शाता है।

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