काउंसलिंग बोर्ड का कहना है कि ये सीटें भरने के लिए पूरा अवसर दिया, लेकिन ये अंतिम समय तक भरी नहीं। जबकि कुछ अभ्यर्थियों का कहना है कि बोर्ड ने जानबूझकर इन सीटों पर आए अभ्यर्थियों को दस्तावेज जमा कराने का अवसर देना ही नहीं चाहा। जिससे ये सीटें खाली रह गईं। जिसका खमियाजा अभ्यर्थियों के साथ ही कॉलेजों को भी उठाना पड़ा। एनआरआई कोटे की फीस जहां करीब पांच साल की 70 लाख है। जबकि सामान्य कोटे की फीस इसकी करीब आधी है। इससे नए कॉलेजों को करीब तीन करोड़ तक के नुकसान की जानकारी है।
डीडी के नाम पर बनाया चक्करघिन्नी
प्रदेशभर से आए अभ्यर्थियों में से कई ऐसे भी, जिनके दूसरे चरण की काउंसलिंग में कॉलेज अपग्रेड हो गए। उन्हें दुबारा डीडी बनवाने के लिए कहा गया। जबकि इनका कहना था कि वेबसाइट पर दुबारा डीडी बनवाने की आवश्यकता नहीं बताई गई थी। अभ्यर्थियों का कहना था कि शनिवार-रविवार दोनों दिन अवकाश के थे। सोमवार को अभ्यर्थी डीडी बनवाने में ही बहुत परेशान हो गए।
फर्जी अभ्यर्थियों के आरोप भी
कई अभ्यर्थियों का आरोप था कि काउंसलिंग में कुछ फर्जी अभ्यर्थी भी शामिल हुए। इन अभ्यर्थियों को कुछ निजी कॉलेजों ने काउंसलिंग तक की प्रक्रिया पूरी करवाई। इसके बदले उन्हें पैसे भी दिए गए। एनवक्त पर इन्हें सीट खाली करने का सौदा किया गया। ताकि निजी कॉलेज मैनेजमेंट कोटे में मनचाहे दाम लेकर ये सीटें भर सकें।
वर्जन
सब कुछ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार चल रहा है। अभ्यर्थी क्या और क्यों आरोप लगा रहे हैं। इस बारे में अभी कुछ नहीं कह सकता। एनआरआई कोटे में कुछ नए सरकारी मेडिकल कॉलेजों सहित निजी मेडिकल कॉलेजों की सीटें भी सामान्य में परिवर्तित की गई है। डॉ यूएस अग्रवाल, प्राचार्य एवं नियंत्रक, एसएमएस मेडिकल कॉलेज