पांच वर्ष में बंद किए प्रोफेशनल कोर्स
विश्वविद्यालय में छात्रों को रोजगार देने के लिए कई वर्षों पहले प्रोफेशनल कोर्स शुरू किए गए थे। लेकिन, पांच वर्षों में बड़ी संख्या में इन पाठ्यक्रमों को बंद किया गया। राजस्थान विश्वविद्यालय ने सत्र 2014-15 में 15 से अधिक प्रोफेशनल कोर्स बंद कर दिए। उसके बाद हर साल दो-तीन कोर्स बंद किए जा रहे हैं। बंद होने वाले कोर्सज में प्रोफेशनल कोर्स अधिक हैं। जो कोर्स शेष बचे हैं, उनमें भी छात्रों की संख्या न के बराबर है।
पिछले वर्षों में बंद हुए ये कोर्स
1. एमएसडब्ल्यू : देशभर में सोशल वर्क में मास्टर (एमएसडब्ल्यू) कोर्स की मांग अधिक हैं। सामाजिक क्षेत्र में आने वाले युवा इस कोर्स की पढ़ाई करते हैं, लेकिन राजस्थान विश्वविद्यालय ने इसे बंद कर दिया।
2. वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट : देश में पानी की कमी से सबसे अधिक जूझने वाला प्रदेश राजस्थान ही है। पानी के स्त्रोतों के लिए वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट पाठ्यक्रम शुरू किया गया था, मगर यूनिवर्सिटी ने इसे बंद कर दिया।
3. मास्टर ऑफ टूरिज्म : राजस्थान पर्यटन का हब है। इसके बाद भी विश्वविद्यालय ने इस कोर्स को बंद कर दिया। हालांकि प्रदेश के दूसरे विश्वविद्यालयों में यह कोर्स चल रहा है।
4. नेहरू स्टडीज
5. डिप्लोमा इन बैकिंग एंड फाइनेंस।
6. मास्टर इन एजुकेशन।
7. पीजी डिप्लोमा इन रिमोट सेंसिंग
कुछ प्रोफेशनल कोर्स में छात्रों की कमी
कॉमर्स संकाय में चल रहे कुछ प्रोफेशनल कोर्स छात्र-छात्राओं की कमी से जूझ रहे हैं। इनमें ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट व एमआईबी आदि में तय सीट के मुकाबले एक तिहाई छात्र ही प्रवेश ले रहे हैं। वहीं, भूगोल विषय में चलाया जाने वाला रिमोट सेंसिंग कोर्स भी शिक्षकों की कमी के कारण चल नहीं पाया।
एमबीए में गिनती के छात्र, सालभर में शुरू नहीं हो पाया एन्टरप्रेन्योरशिप सेंटर
राजस्थान विश्वविद्यालय में चल रहे एमबीए कोर्स में गिनती के छात्र हैं। विश्वविद्यालय ने एमबीए के लिए पोद्दार मैनेजमेंट कॉलेज शुरू कर रखा है। इसमें छात्रों की संख्या 10-20 ही है। जबकि निजी कॉलेजों में एमबीए की सीटें फुल रहती हैं। वहीं, विश्वविद्यालय प्रशासन ने पिछले वर्ष सेंटर फॉर एन्टरप्रोन्योरशिप भी शुरू किया था। लेकिन, एक वर्ष में कोर्स शुरू ही नहीं हो पाया। केवल कुछ सेमिनार ही हो पाए।
रोजगार में भी शून्य
राजस्थान विश्वविद्यालय में चल रहे नियमित कोर्स (बीए, एमए, बीकॉम, एमकॉम, बीएससी) आदि से छात्रों को पढ़ाई पूरी करने के बाद रोजगार नहीं मिलता। विश्वविद्यालय में रोजगार केंद्र होने के बाद भी दो वर्षों में रोजगार का आंकड़ा शून्य के आसपास ही रहा है।