उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने इन शिक्षकों को पदक, प्रशस्ति पत्र और 50 हजार रुपए का चेक प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। इससे पहले हर साल तीन सौ से अधिक शिक्षकों को पुरस्कृत किया जाता था। मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि पहले शिक्षक पुरस्कार के लिए राज्यों से सिफारिशें आती थी, लेकिन इस बार चयन प्रक्रिया बदल दी गई है और उसे पारदर्शी बना दिया है। अब सिफारिशों के आधार पर नहीं बल्कि काम के आधार पर पुरस्कार दिए जाएंगे। अब पुरस्कार के लिए नवाचार को बढ़ावा देने वालों को अवसर दिया है।
उन्होंने कहा कि अब शिक्षक खुद भी अपने नाम का प्रस्ताव कर सकते हैं। इन शिक्षकों ने खुद ऑनलाइन आवेदन किया और अपने काम का वीडियो भी डाउनलोड किया। कुल 6500 शिक्षकों के आवेदन मिले, प्रत्येक जिले से तीन-तीन नाम आए और फिर उनकी छटाई के बाद छोटे बड़े राज्यों से तीन से लेकर छह शिक्षकों के नाम आए और इस तरह कुल डेढ़ सौ शिक्षकों का चयन हुआ। फिर एक राष्ट्रीय जूरी ने उनमें से 45 शिक्षकों का चयन पुरस्कार के लिए किया।
उन्होंने कहा कि इस बार पुरस्कार ऐसे लोगों को दिया गया जिनके नाम पहले आ नहीं सकते थे। इन पुरस्कृत शिक्षकों में कई ऐसे हैं जिन्होंने छात्रों को शिक्षा देने के लिए खुद मोबाइल एप्प बनाए। जावड़ेकर ने कहा कि इन शिक्षकों ने अपने स्कूलों में विद्यार्थियों के स्कूल छोडऩे की संख्या भी कम की है और समुदाय को भी स्कूलों से जोड़ा है। इन शिक्षकों के काम को एक फिल्म में भी यहां दिखाया गया है। इस फिल्म को मानव संसाधन विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर भी डाला जाएगा ताकि दूसरे शिक्षक भी इनसे प्रेरणा ले सकें।
उन्होंने बताया कि देश के 14-15 लाख शिक्षकों का ऑनलाइन प्रशिक्षण का काम शुरू हो गया है और ये पहली परीक्षा में पास हो गए हैं और अगले साल मार्च में इन शिक्षकों की अंतिम परीक्षा होगी। यह दुनिया का शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों के लिए दीक्षा प्लेटफॉर्म भी शुरू किया गया है जिस पर कोई शिक्षक अपना अच्छा पाठ रिकॉर्ड कर उसे इस पर डाल सकता है। उससे दूसरे छात्र भी लाभान्वित होंगे। इसी तरह एक शगुन प्लेटफार्म भी तैयार किया गया है जिस पर स्कूल अपने श्रेष्ठ कार्यों एवं प्रयोगों को सबसे साझा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों से इस बारे में कहा गया है और हजारों वीडियो भी मंत्रालय आए हैं।
इससे पहले मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने शिक्षकों को वास्तविक राष्ट्र निर्माता बताया और कहा कि सीमा पर लडऩे वाले जवानों से भी अधिक ऊंचा स्थान शिक्षकों का होता है क्योंकि वे ही उन्हें यह जज्बा देते हैं। जो खिलाड़ी पदक जीतते हैं उनके पीछे भी कोई न कोई शिक्षक होता है। एक चायवाला भी देश का प्रधानमंत्री बनता है तो उसके पीछे भी कोई न कोई शिक्षक रहा होगा। इस तरह शिक्षकों की महती भूमिका है, लेकिन समाज ने शिक्षकों का आदर करना छोड़ दिया है।