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success factor: आसमान छूने के लिए कोशिश जरूरी

डायग्नोस्टिक एंड प्रिवेंटिव केयर लैबोरेट्रीज चेन थायरोकेयर टेक्नोलॉजिज लिमिटेड के फाउंडर अरोकिस्वामी वेलुमणी को डायग्नोस्टिक किंग Diagnostic king कहा जाता है लेकिन उन्होंने लाइफ Life में एक समय ऐसा भी देखा, जब उनके माता-पिता उन्हें एक जोड़ी चप्पल तक खरीद कर पहना पाने में समर्थ नहीं थे।

Dec 23, 2019 / 01:29 pm

Jitendra Rangey

success factor: आसमान छूने के लिए कोशिश जरूरी

success story

पिता भूमिहीन किसान थे
तमिलनाडु के कोयम्बटूर में एक छोटे गांव में 1959 में पैदा हुए अरोकिस्वामी वेलुमणी के पिता भूमिहीन किसान थे और मां गृहिणी, जिन्होंने भैंसे पाली और परिवार का पालन-पोषण करने के लिए उनका दूध बेचा। 1978 में वेलुमणी ने मद्रास यूनिवर्सिटी से संबद्ध रामकृष्ण मिशन विद्यालय से बीएससी की डिग्री ली। 1979 में उन्होंने कोयम्बटूर की छोटी फार्मास्युटिकल कंपनी जेमिनी कैप्सूल्स में शिफ्ट केमिस्ट के रूप में नौकरी शुरू की। जहां उन्हें 150 रुपए प्रतिमाह सेलरी मिलती थी। मगर तीन साल बाद कंपनी बंद हो गई। फिर उन्होंने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) में लैब असिस्टेंट के लिए आवेदन किया और उन्हें जॉब मिल गई। इसी दौरान उन्होंने 1985 में अपनी मास्टर डिग्री कंप्लीट की। इसके बाद थॉयराइड बायोकेमिस्ट्री में डॉक्टरेट डिग्री ली और साइंटिस्ट scientist बने। बाद में उन्हें मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के रेडिएशन मेडिसिन सेंटर में बार्क डिपार्टमेंट में नियुक्त किया गया।
पीएफ के पैसों से कंपनी को स्टार्ट किया
बार्क में 14 साल नौकरी करने के बाद वेलुमणी ने 1996 में अपनी थायरॉइड टेस्टिंग लैब थायरोकेयर Thyroid Testing Lab Thyrocare स्थापित करने का फैसला किया। उन्होंने पीएफ के पैसों से कंपनी को स्टार्ट किया। उन्होंने अपनी डायग्नोस्टिक लैब का फ्रेंचाइजी मॉड्यूल इंट्रोड्यूस किया और अफॉर्डेबल टेस्टिंग सर्विसेज पेश की। भारत में थायरॉइड के बारे में लोगों को जागरूक करने का श्रेय इनके इस प्रयास को ही जाता है। फिर उन्होंने अपनी इस कंपनी को विस्तार देना शुरू किया, जिसमें वह लगातार कामयाब होते गए। देखते ही देखते वह एक सफल एंटरप्रेन्योर में शुमार हो गए। उनका व्यवसाय दुनिया के कई देशों में फैला है और उनकी कंपनी की कीमत हजारों करोड़ की हो गई है। एक बार उन्होंने बताया था कि उन्होंने बिजनेस मैनेजमेंट अपनी मां से सीखा, जो कि केवल 70 रुपए में परिवार का प्रबंधन करती थीं।

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