पूरे प्रदेश में ऐसा हो रहा है। समझा जा सकता है कि प्राचार्य व शिक्षक यदि इस चेतावनी को गंभीरता से लेकर पूरी तरह जुट भी जाएं, तो भी उनके पास समय रह कहां गया है। समझा जा सकता है कि वे बच्चों की सही स्वरूप में मदद कर ही नहीं सकते। हालांकि ग्वालियर चंबल के प्राचार्य और शिक्षकों के लिए यह नई बात नहीं है। हर साल परीक्षा से पहले ऐसा होता रहा है। सच्चाई यह है कि शिक्षकों ने छात्रों को क्या पढ़ाया, कितने दिन कक्षाएं लगीं और कितना कोर्स पूरा हुआ, यह पूछने वाला कोई नहीं है।
हालात यह हैं कि प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल के छात्र ठीक से हिन्दी तक नहीं लिख पा रहे हैं। उन्हें पहाड़े तक याद नहीं हैं। ऐसे में वे गणित के सवाल कैसे हल करेंगे। शिक्षकों की हालत भी छात्रों जैसी ही है। दतिया जिले के सेवढ़ा विकासखंड के स्कूलों में 5वीं और 8वीं के परिणाम को कैसे बेहतर किया जाए डीईओ डीपीसी 367 स्कूलों के प्राचार्यों की बैठक बुलाते है, लेकिन 28 प्राचार्य अनुपस्थित रहते है। शिक्षा विभाग के अधिकारी कार्रवाई के नाम पर सिर्फ नोटिस जारी करने के निर्देश देते हैं। ऐसे में लापरवाह प्राचार्य से सौ फीसदी परिणाम की उम्मीद कुछ ज्यादा ही है।
शिवपुरी, श्योपुर, अशोकनगर और गुना जिले के स्कूलों को मिशन-1000 में शामिल किया गया। उत्कृष्ट और मॉडल स्कूल की तर्ज पर विकसित करने की योजना तैयार की गई। लक्ष्य 100 फीसदी रिजल्ट का रखा गया, लेकिन छमाही परिणाम 60 फीसदी रह गया। शिक्षकों का कहना है कि उनसे शिक्षण कार्य के अतिरिक्त मतदाता पर्ची और गरीबी रेखा के सर्वे के काम करवाए जा रहे हैं। यदि वाकई में प्रदेश सरकार शिक्षा का स्तर सुधारना चाहती है तो उसे नए शिक्षण सत्र के प्रारंभ से ही स्कूलों में शिक्षण कार्य की व्यापक निगरानी करनी होगी। जो सख्ती शिक्षा विभाग के अधिकारी अब दिखा रहे हैं वह जुलाई से ही दिखानी होगी। तभी स्कूलों में नियमित कक्षाएं लग सकेंगी और कोर्स भी समय पर पूरा होगा। तब परिणाम भी शत प्रतिशत रहेगा।