वर्ष 2017 में बीजेपी अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी, और केवल तीन सीट ही जीत पायी थी। अगले वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में अब पंजाब की जनता भाजपा को एक बड़े विकल्प के तौर पर देख सकती है।
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पंजाब चुनावों से पहले अकाली दल के नेता मंजिन्दर सिंह सिरसा ने भाजपा का दामन थाम लिया है। इससे अकाली दल को बड़ा झटका तो लगा ही है साथ ही अमरिंदर के बाद सिरसा का साथ मिलने से भाजपा को मजबूती मिली है। कैसे अमरिंदर और सिरसा भाजपा के लिए पंजाब के आगामी विधानसभा चुनावों में फायदेमंद साबित हो सकते हैं इसे समझते हैं।
जट सिखों को साधना होगा आसान
पंजाब के ज़्यादातर जाट सिख है, जिन्हें पंजाबी में जट सिख भी कहते हैं। ये पंजाब की आबादी का 30-40 फीसदी हैं। सिखों के बीच मजबूत प्रभाव रखने वाले मंजिन्दर सिंह सिरसा की एंट्री से भाजपा के लिए जट सिखों को साधना आसान हो जाएगा।
पंजाब में जाट मूल रूप से किसान हैं और ये मुख्य रूप से खेती करते हैं। किसान आंदोलन में भी सिरसा ने जमकर भाग लिया था। अब भाजपा को इस समुदाय को साधने के लिए एक बड़ा चेहरा मिल गया है।
वोट बैंक किया मजबूत
भाजपा का फोकस पहले प्रदेश की उन सीटों पर थी जहां हिंदु वॉटर्स की संख्या अधिक है और किसान आंदोलन का प्रभाव भी कम था। कृषि कानून वापस लेकर भाजपा ने अन्य सीटों पर भी फोकस करना शुरू कर दिया। पंजाब में पहले ही अमरिंदर सिंह ने गठबंधन की घोषणा कर भाजपा के वोट बेस को मजबूत करने का काम किया है।
अमरिंदर, जो खुद जट सिख हैं, पंजाब में जट और दलित दोनों सिखों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। पंजाब में जट सिखों के बाद दलित सिखों की आबादी सबसे अधिक है। इसके साथ ही अपनी राष्ट्रवादी छवि के कारण उन्हें पंजाबी हिंदुओं का समर्थन भी प्राप्त है।
पहले ही पंजाब के राज्य में भाजपा को नॉन जाट सिख समेत हिन्दू और पूर्वांचल के प्रवासी लोगों का समर्थन प्राप्त है। अब अमरिंदर सिंह और सिरसा के साथ आने से भाजपा का जनाधार राज्य में बढ़ेगा और हो सकता है कई सीटों पर इसका प्रभाव भी दिखाई दे।
कांग्रेस, AAP और अकाली दल कमजोर स्थिति में भाजपा राज्य में अन्य दलों की कमजोर स्थिति का फायदा भी उठाया सकती है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस राज्य में आंतरिक मतभेद से जूझ रहे हैं। वहीं अकाली दल आज भी पंजाब की जनता की नाराजगी का शिकार है। कांग्रेस ने जिस तरह से अमरिंदर सिंह के साथ व्यवहार किया और पाकिस्तान समर्थक नवजोत सिंह सिद्धू को बढ़ावा दिया, उससे पंजाब की जनता में नाराजगी है।
इसके साथ ही दलित सिखों को लेकर कांग्रेस अपनी मंशा के कारण घेरे में हैं। वहीं अकाली दल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। ये मंजिन्दर सिरसा ही थे जो वर्ष 2012 में जब गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमिटी के महासचिव बने तो अकाली दल को विधानसभा चुनावों में जीत मिल थी। अब सिरसा के जाने से अकाली दल और कमजोर हो गई है। अब भाजपा ने कांग्रेस और अन्य दलों से किसान का मुद्दा भी छीन लिया है।
भाजपा एक मजबूत विकल्प बनकर उभर रही
पंजाब की जनता को अकाली दल और कांग्रेस के अलावा कभी एक मजबूत विकल्प नहीं रहा है। हाँ, आम आदमी पार्टी ने जरूर ये कोशिश की थी और कुछ हद तक सफल भी रही। अब आंतरिक कलह के कारण पार्टी पिछड़ती दिखाई दे रही है।
वहीं, अकाली दल को लेकर आम जनता में नाराजगी कम नहीं हुई है और न ही भाजपा से अलग होने पर पार्टी को कोई खास फायदा हुआ। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी आंतरिक कलह और सीएम चेहरे को लेकर परेशान हैं। इन सभी के बीच भाजपा ने दो बड़े चेहरों को अपने साथ कर अपनी जड़ें राज्य में मजबूत की हैं।
वर्ष 2017 में बीजेपी अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी, और केवल तीन सीट ही जीत पायी थी। अगले वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में अब पंजाब की जनता भाजपा को एक बड़े विकल्प के तौर पर देख सकती है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि पंजाब के चुनावों में आम जनता किसे अपना नेता चुनती है और किसे बाहर का रास्ता दिखाती है।