उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो भाजपा की जीत की वजह सुरक्षा को माना जा रहा है। पिछले पांच साल में यूपी में गुंडागर्दी में कमी आई है। साथ ही केंद्र प्रवर्तित योजनाओं का जनता को लाभ मिला है। वहीं समाजवादी पार्टी की हार की बात की जाए तो मुसलमानों का सपा के पक्ष में ध्रुवीकृत होना बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो गया। बीजेपी फ्लोटिंग वोटर्स के मन में यह बात बैठाने में सफल दिखी कि यदि समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी होती है तो वह मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर जाएगी। साथ ही बीजेपी की कल्याणकारी योजनाओं का भी पार्टी को फायदा मिला है।
मोदी फैक्टर हावी, खींचतान को कांग्रेस को ले डूबी उत्तराखंड की बात की जाए तो यहां स्थानीय और राष्ट्रीय कई मुद्दों का असर साफ दिखा। यहां मोदी फैक्टर हावी रहा। इसके अलावा भाजपा का सीएम चेहरा बदलना भी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुआ। चार धाम में किए गए विकास कार्यों का प्रचार भी यहां जीत की राह बनाता गया। वहीं कांग्रेस में गुटबाजी, हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह के बीच कोल्डवॉर के साथ ही प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव से रावत की खींचतान जीत में रोड़ा बन गई।
अंतरकलह बना पंजाब में हार की वजह पंजाब में कांग्रेस के आंतरिक कलह को पार्टी की हार की वजह माना जा रहा है। कैप्टन अमरिंदर के पार्टी छोड़ने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू और सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के बीच आंतरिक तनातनी के वजह से जनता के बीच गलत संदेश गया। इस तनातनी के चलते राहुल गांधी ने चन्नी को सीएम का चेहरा घोषित किया। चन्नी के दलित होने का फायदा भी पार्टी को नहीं मिल पाया। हालत ये है कि चन्नी खुद दोनों सीटों पर हार गए और सिद्धू को भी हार का सामना करना पड़ा।
गोवा में विकास और मणिपुर में कांग्रेस की हार की वजह मणिपुर में पहले कांग्रेस के हाथ से सत्ता गई और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में इस चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में विपक्षी दल की भूमिका से भी बाहर हो गई है। गोवा में भाजपा के विकास को वोट मिला है। भाजपा यहां सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। कांग्रेस की बात की जाए तो यहां भी एकजुटता की कमी की वजह से कांग्रेस को हार मिली है।