बाला प्रसाद 1991 में राम लहर में बने थे विधायक साल 1991 के चुनाव में चली राम लहर में पहली बार धौरहरा सीट से भाजपा का खाता खुला था। इस चुनाव में बाला प्रसाद अवस्थी यहां से विधायक बने। 1993 में यह सीट समाजवादी पार्टी के खाते में चली गई और यशपाल चौधरी विधानसभा पहुंचे। 1996 में कांग्रेस के सरस्वती प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की। 2002 में सपा के यशपाल चौधरी फिर इस सीट से विधायक बने।
2007 पाला बदल बसपा में हो गये थे शामिल वहीं 2007 में मायावती की सोशल इंजिनियरिंग फार्मूले ने इस सीट पर बसपा का खाता खोला और बाला प्रसाद अवस्थी विधायक चुने गए। इसके बाद 2012 में भी जनता ने बसपा के शमशेर बहादुर को जिताया।
2017 में फिर की भाजपा में वापसी 2017 में मोदी लहर को भांपकर बाला प्रसाद ने भाजपा का दामन थामा और फिर विधायक बने। इससे पहले अब तक बदायूं जिले के बिल्सी से भाजपा विधायक राधा कृष्ण शर्मा और संतकबीर नगर के खलीलाबाद सीट से विधायक दिग्विजयनाथ चौबे उर्फ जय चौबे भी भाजपा छोड चुके हैं।
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एक और मंत्री डॉ.सैनी का त्यागपत्र, अब तक तीन मंत्रियों समेत 12 विधायकों ने छोड़ी भाजपा, पढि़ए इनसाइड स्टोरी यूपी में 12 से 14 फीसदी है ब्राह्मण वोटर्स बता दें कि उत्तर प्रदेश में 12 से 14 फीसदी ब्राह्मण मतदाता है। यूपी में करीब 115 सीटें ऐसी हैं, जिनमें ब्राह्मण मतदाता अच्छा प्रभाव रखते हैं। यूपी में एऱ दर्जन जिले ऐसे हैं 15 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण वोट हैं। इनमें बलरामपुर, बस्ती, संतकबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, इलाहाबाद प्रमुख हैं। इसके अलावा पूर्वी से लेकर मध्य, बुंदेलखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश की करीब 100 सीटों पर ब्राह्मण मतदाता भले ही संख्या में ज्यादा न हो लेकिन मुखर होने के कारण ब्राह्मण सियासी माहौल को भी बदलने की ताकत रखते हैं।
2017 में 46 ब्राह्मण नेता बीजेपी से बने विधायक पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश की कुल 403 विधानसभा सीटों में से भाजपा के 46, समाजवादी पार्टी के तीन, बहुजन समाज पार्टी के तीन, कांग्रेस का एक और अपना दल के एक ब्राह्मण विधायक हैं। जबकि दो ब्राह्मण विधायक निर्दलीय चुने गए थे। इन आंकड़ों से ज़ाहिर है कि 2017 के चुनाव में ब्राह्मणों ने भाजपा का खुल कर समर्थन किया था। लेकिन पिछले कुछ महीनों में तस्वीर बदली है।
परिस्थितियों के हिसाब से वोट करता है ब्राह्मण राजनीति जानकारों का मानना है कि ब्राह्मण अपनी परिस्थितियों के हिसाब से वोट करता है। वो देखता है कि उसे कहां सम्मान मिलेगा। इससे साफ जाहिर होता है कि 2007 में और 2012 में उन्होंने अपनी परिस्थितियों के हिसाब से वोट दिया था और यह साबित करता है कि ब्राह्मणों के लिए भाजपा परंपरागत पार्टी नहीं है। इस बार भी वहीं हालात बन रहे है। ब्राह्मणों ने कांग्रेस का खूब समय तक साथ दिया जिसका नतीजा था कि कांग्रेस ने लंबे समय तक यूपी में राज किया।