यह राज्य के मतदाताओं की सजगता ही है कि छह अप्रैल को राज्य में हुए मतदान के दौरान तेज गर्मी और कोरोना का बढ़ता संक्रमण भी वोटर्स को नहीं रोक सका और राज्य में 74.02 प्रतिशत मतदान हुआ। हालांकि इस बार का मतदान 2016 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले (वर्ष 2016 में 77.35 फीसदी मतदान हुआ था) थोड़ा सा कम रहा। मतदान के रुझान को देखते हुए इस बार किसी बड़े फेरबदल की संभावना भी देखी जा रही हैं।
– मुस्लिम संगठनों ने की खादेर के मंदिर जाने की आलोचना लेफ्ट और यूडीएफ दोनों ने किया जीत का दावाएलडीएफ जहां मतदान से पहले वापिस सरकार में लौटने की बात कर रहा था, वहीं यूडीएफ के खुद के सर्वे के अनुसार गठबंधन 75 से 85 सीटें जीत सकता है। लेफ्ट की ओर से सीपीएम पोलितब्यूरो मेम्बर एस. रामचन्द्रन पिल्लई ने कहा कि पूरे राज्य में लेफ्ट की लहर है और हम कम से कम 85 सीटें जीतेंगे। मतदान खत्म होने के बाद विपक्ष के नेता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता रमेश चेन्नीथला ने कहा कि यूडीएफ जबरदस्त जीत हासिल कर राज्य में सरकार बनाएगा। भाजपानीत एनडीए यहां पर 5 से 7 सीटें जीत सकता है हालांकि अंदरुनी सूत्रों का मानना है कि भाजपा इससे ज्यादा सीटें भी जीत सकती है।
केरल में इस बार हुआ विधानसभा चुनाव बहुत ही खास भी है। आमतौर पर यहां चुनावों में धर्म का इतना व्यापक प्रभाव देखने को नहीं मिलता है परन्तु इस बार जहां स्थानीय चर्च ने अपने अनुयायियों से उम्मीदवारों को वोट देने की अपील की, वहीं भाजपा और कांग्रेस ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश जैसे मुद्दे को लेकर हिंदुओं को अपने पक्ष में लाने का प्रयास किया।
तेज गर्मी और कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते प्रमुख पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता अपनी पूरी क्षमता से प्रचार नहीं कर पाए। जबकि इसी दौरान राज्य में पीएम मोदी की रैलियों ने भी मतदाताओं को एक नई राह दिखाने का कार्य किया है। पिछले विधानसभा चुनावों तक राज्य में केवल दो ही गठबंधन थे, पहला वाम समर्थित एलडीएफ और दूसरा कांग्रेसनीत यूडीएफ। अब भाजपा के बढ़ते जनाधार के कारण इस बार कई सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा जीतने की स्थिति में भले ही न हो परन्तु वहां निर्णायक स्थिति में अवश्य है। ऐसा होने पर एलडीएफ और यूडीएफ के बीच मुकाबला बहुत ही नजदीकी का हो गया है। वोट प्रतिशत में मामूली सा भी अंतर यहां बड़ा खेल कर सकता है।